मौन
मंगलवार, 8 सितंबर 2009
बैठ ले कुछ देर,
आओ, एक पथ के पथिक से
प्रिय, अंत और अनंत के,
तम-गहन-जीवन घेर।
मौन मधु हो जाए
भाषा मुकता की आड़ में,
मन सरलता की बाड़ में
जल-बिन्दु-सा बह जाए ।
सरल, अति स्वछंद
जीवन, प्रात के लघु पात से
उत्थान-पतनाघात से
रह जाए चुप, निर्द्वंद्व ।
सूर्यकांत त्रिपाठी " निराला "