कभी तो पतंग उडा के देख  

शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2009

कभी तो पतंग उडा के देख
ख्वाब से आँख लड़ा के देख

ख़ुद ठिकाने पहूचा आएगी
हवा को ख़त पकड़ा के देख

हँसेगी दो - चार मुलाकातों में
जिंदगी को जरा चिढा के देख

आइना देखता रह जाएगा
पाव ज़रा लडखडा के देख

घुल-मिल जाएगा हवाओ में
परिंदे को ज़रा उडा के देख

अशोक प्लेटो

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उसके दिल में जरूर कोई रहता है  

बुधवार, 25 फ़रवरी 2009

उसके दिल में जरूर कोई रहता है
वरना कौन चुपचाप दर्द सहता है

कही भीतर से रोता है ताजमहल
लाख पूछो लेकिन कुछ नही कहता है

घर लोटोगे तो गली कुचे पूछेंगे
क्या यहाँ तुम्हारा कोई रहता है

आग मरघट में लगे या दिल में
दर्द का तूफान दोनों में उठता है

यह ख़बर लाई थी नन्ही चिडिया
तपते सेहरा में गुलाब खिलता है

अशोक प्लेटो

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बिखरे मोती  

गुरुवार, 19 फ़रवरी 2009

हसरतो का हो गया है
इस कदर दिल में हुजूम
साँस रास्ता ढूंढती
आने जाने के लिए

साँस आए जिंदगी है
आए मौत है
मौत और जिंदगी में कोई फासला नही

खूने नाहक नही परवानो का देखा जाता
हम चिरागों को सरेआम बुझा देते है

मिट के भी अपने साथ रखता है
नेक इन्सान, नेक सीरत को
मसले जाने के बावजूद गुलाब
तर्क करता नही निकहत को

फूल कितना भी खूबसूरत हो
उसमे निकहत नही तो कुछ नही
लाख जौहर हो आदमी में अगर
आदमियत नही तो कुछ भी नही

हुआ मायूस जब इन्सान
दुनिया के सहारो से
उसे फ़िर गैब से कोई
सहारा मिल ही जाता है
हुज़ुमे कुफ्र ने जिस वक्त
घेरा एहले ईमा को
बचाने को कोई अल्लाह का
प्यारा मिल ही जाता है

सब हाल मेरा देख के
बड जाते है आगे
रुक कर जो सुन सके कोई
भी ऐसा नही मिलता
मिलते है मुझे जानने वाले तो हजारो
लेकिन कोई पहचाने वाला नही मिलता

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लिख कर वरक-ऐ-दिल से मिटाने नही होते  

बुधवार, 18 फ़रवरी 2009

लिख कर वरक--दिल से मिटाने नही होते
कुछ लफ्ज़ ऐसे है हो पुराने नही होते

जब चाहे कोई फूक दे ख्वाबो के नशेमन
आँखों के उजड़ने के ज़माने नही होते

हो जाए जहां शाम, वही इनका बसेरा
अवारा परिंदों के ठिकाने नही होते

मखमूर सय्य्दी

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कितनी दीवारे उठी है एक घर के दरम्यां  

कितनी दीवारे उठी है एक घर के दरम्यां
घर कही गम हो गया है दिवार--दर के दरम्यां

वार वो करते रहेगे ज़ख्म हम सहते रहेगे
है यही रिश्ता पुराना संग सर के दरम्यां

मखमूर सय्य्दी

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नए सफर का नया इंतजाम कह देंगे  

मंगलवार, 17 फ़रवरी 2009

नए सफर का नया इंतजाम कह देंगे
हवा को धुप, चिरागों को शाम कह देंगे

किसी से हाथ भी चुप कर मिलाइए वरना
इसे भी मौलवी साहब हराम कह देंगे

डा. राहत इंदौरी

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गुलाब, ख्वाब, दवा, ज़हर, जाम क्या-क्या है  

गुलाब, ख्वाब, दवा, ज़हर, जाम क्या-क्या है
में गया हूँ बता इंतजाम क्या-क्या है

फ़कीर, शाह, कलंदर, इमाम क्या-क्या है
तुझे पता नही तेरा गुलाम क्या-क्या है

डा. राहत इंदौरी



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रात की धड़कन जब तक जारी रहती है  

सोमवार, 16 फ़रवरी 2009

रात की धड़कन जब तक जारी रहती है
सोते नही हम जिम्मेदारी रहती है

कुछ शायर दिन रात नवाजे जाते है
कुछ गजलो की धुन सरकारी रहती है

डा. राहत इंदौरी

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सिर्फ़ खंजर ही नही आँखों में पानी चहिये  

सिर्फ़ खंजर ही नही आँखों में पानी चहिये
खुदा दुश्मन भी मुझको खानदानी चहिये

में तेरी आवारगी को कुछ नही कहता मगर
यार बादल मेरे खेतो को भी पानी चहिये

डा. राहत इंदौरी

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प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो  

शनिवार, 14 फ़रवरी 2009

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तूफ़ान तो इस शहर में अक्सर आता है  

शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2009

तूफ़ान तो इस शहर में अक्सर आता है
देखे अब के किस का नम्बर आता है

यारो के भी दांत बहुत ज़हरीले है
हमको भी सापों का मंतर आता है

बच कर रहना एक कातल इस बस्ती में
कागज़ की पोशाक पहन कर आता है

सुख चूका हूँ फिर भी मेरे साहिल पर
पानी पीने रोज़ समंदर आता है

डा. राहत इंदौरी

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इतने करीब आके सदा दे गया मुझे  

इतने करीब आके सदा दे गया मुझे
में बुझ रही थी कोई हवा दे गया मुझे

जीने का इक मिजाज़ नया दे गया मुझे
माँगा था मैंने ज़हर दवा दे गया मुझे

अंजुम रहबर

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हाथ यू हाथ में नही मिलता  

हाथ यू हाथ में नही मिलता
मुफ्त सौगात में नही मिलता

प्यार मिलता है प्यार से ' अंजुम '
प्यार खैरात में नही मिलता

अंजुम रहबर

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शाम जब भी परिंदे चहकने लगे  

बुधवार, 11 फ़रवरी 2009

शाम जब भी परिंदे चहकने लगे
मेरी पलकों पे जुगनू चमकने लगे

उसके आने की बस एक ख़बर आई थी
और कलाई के कंगन खनकने लगे

जरफ है लाज़मी आदमी के लिए
तुमने पी भी नही और बहकने लगे

अंजुम रहबर

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ख़ुद को सवारूगी घर को सजा लूंगी  

ख़ुद को सवारूगी घर को सजा लूंगी
आएगा वो जिस दिन ईद माना लूंगी

मुझ से छुपा कर तू लाख रखे ख़ुद को
तुझको किसी दिन में तुझसे चुरा लूंगी

दूरिया यादो की रंगीन पतगे है
तू भी उडा लेना में भी उडा लूंगी

नींदे तो मेरी है ख्वाब तो तेरे है
जब भी में चाहूगी तुझ को बुला लूगी

अंजूम रहबर

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अबादतो की तरह में यह काम करता हूँ  

मंगलवार, 10 फ़रवरी 2009

अबादतो की तरह में यह काम करता हूँ
मेरा उसूल है पहले सलाम करता हूँ

मखालफत से मेरी शक्सियत सवरती है
में दुश्मनों का बड़ा एहतराम करता हूँ

में अपनी जेब में अपना पता नही रखता
सफर में सिर्फ़ यही एहतमाम करता हूँ

में डर गया हूँ बहुत सायादार पेडो से
ज़रा सी धुप बिछा कर कयाम करता हूँ

मुझे खुदा ने ग़ज़ल का दयार बख्शा है
यह सल्तनत में मोह्हबत के नाम करता हूँ

डा. बशीर बदर

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अगर तलाश करू कोई मिल ही जाएगा  

सोमवार, 9 फ़रवरी 2009

अगर तलाश करू कोई मिल ही जाएगा
मगर तुम्हारी तरह कौन मुझको चाहेगा

तुम्हे जरूर कोई चाहतो से देखेगा
मगर वो आँखे हमारी कहाँ से लायेगा

जाने कब मेरे दिल पर नई सी दस्तक हो
मकान खली हुआ है तो कोई आएगा

डा. बशीर बदर

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लोग बहरे है इन्हे दिल की सुनाया न करो  

लोग बहरे है इन्हे दिल की सुनाया करो
बंद दरवाजों पे आवाज़ लगाया करो

पत्थरो से कहाँ मिलती है मुरादे दिल की
तुम मजारो पे चिरागों को जलाया करो

वक्त की आंधी उडाकर कही ले जाए
रेत पर तुम मेरी तस्वीर बनाया करो

उमर भर कौन रहा साथ किसी के ' अश्क '
तुम मेरी याद में अब अश्क बहाया करो

अश्क अम्बालवी

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तीरगी जैसे जरूरी, रौशनी के वास्ते  

शनिवार, 7 फ़रवरी 2009

तीरगी जैसे जरूरी, रौशनी के वास्ते
दर्द भी बेहद जरूरी है, खुशी के वास्ते

अहमियत ही हो जाए जिंदगी की कम कही
मौत भी बेहद जरूरी, हर किसी के वास्ते

लोग नंगे पाव भी ले सिख चलना इसलिए
छाव भी बेहद जरूरी, जिंदगी के वास्ते

वास्तव में है वही शायर, जो दिल से लिख रहा
पीर भी बेहद जरूरी, शायरी के वास्ते

खो कही पहचान ही जाए उसकी दोस्तों
नीर भी बेहद जरूरी, उस नदी के वास्ते

उब जाएगा अकेला हलचलों के दौर में
आदमी बेहद जरूरी, आदमी के वास्ते

घमंडी लाल अग्रवाल

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इधर उधर कई मंजिल है, चल सको तो चलो  

शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2009

इधर उधर कई मंजिल है, चल सको तो चलो
बने-बनाये है सांचे, जो ढल सको तो चलो

यहाँ किसी को कोई रास्ता नही देता
मुझे गिरा के अगर तुम संभल सको तो चलो

हरेक सफर को है महफूज रास्तो की तलाश
हिफाज़तो की रिवायत बदल सको तो चलो

कही नही कोई सूरज, धुआ धुआ है फिजा
ख़ुद आपने आप से बाहर निकल सको तो चलो

निदा फाजली

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बिखरे मोती  

गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009

साफ़ गोई से क्या लिया हमने
सबको दुश्मन बना लिया हमने

गैर नीचा ख़ुद--ख़ुद हो जाएगा
ख़ुद को पहले उससे ऊँचा कीजिये

कब वो रुकते है किसी मंजिल पर
जिनको चलने में मज़ा आता है

दर्द की जब कोई दवा ही नही
क्यो फ़िर दर्द को दवा कहिये

पेड़ को काट कर तू पछतायेगा
फूल-फल क्या, शाख से भी जाएगा

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मेरे जैसे बन जाओगे  

मेरे जैसे बन जाओगे
जब इश्क तुम्हे हो जाएगा
दीवारों से टकराओगे
जब इश्क तुम्हे हो जाएगा

हर बात गवारा कर लोगे
मन्नत भी उतरा कर लोगे
ताबीज भी बन्ध वाओगे
जब इश्क तुम्हे हो जाएगा

तन्हाई के झूले झूओलोगे
हर बात पुरानी भूलोगे
आइने से घबराओ गे
जब इश्क तुम्हे हो जाएगा

जब सूरज भी खो जाएगा
और चाँद कही सो जाएगा
तुम भी घर देर से आओगे
जब इश्क तुम्हे हो जाएगा

बेचनी जब बड जायेगी
और याद किसी की आएगी
तुम मेरी गजले गाओगे
जब इश्क तुम्हे हो जाएगा

ग़ज़ल के बादशाह जगजीत सिंह जी की ये ग़ज़ल
जिस में उनका साथ उनकी पत्नी चित्र सिंह जी
दिया है इसको सुनिए और लुत्फ़ लीजिये।


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