मजबूरियों ने घर से निकलने नही दिया
सोमवार, 2 फ़रवरी 2009
मजबूरियों ने घर से निकलने नही दिया
मुझ को मेरी ज़मीन ने चलने नही दिया
सूरज को रौशनी से अदावत जरूर है
इसने किसी चिराग को जलने नही दिया
मुझको कभी गरूर से निसबत नही रही
यह साँप आस्तीन में पलने नही दिया
' अंजुम ' इस एहतियात से रोया तो सारी रात
पलकों से आसुंओ को भी ढलने नही दिया
अंजुम बाराबंकवी
2 फ़रवरी 2009 को 4:21 am बजे
' अंजुम ' इस एहतियात से रोया तो सारी रात
पलकों से आसुंओ को भी ढलने नही दिया "
क्या बात कही है....
वाह ! लाजवाब !
इस सुंदर ग़ज़ल के लिए आभार.
2 फ़रवरी 2009 को 7:45 am बजे
बहुत सुंदर...