मजबूरियों ने घर से निकलने नही दिया  

सोमवार, 2 फ़रवरी 2009

मजबूरियों ने घर से निकलने नही दिया
मुझ को मेरी ज़मीन ने चलने नही दिया

सूरज को रौशनी से अदावत जरूर है
इसने किसी चिराग को जलने नही दिया

मुझको कभी गरूर से निसबत नही रही
यह साँप आस्तीन में पलने नही दिया

' अंजुम ' इस एहतियात से रोया तो सारी रात
पलकों से आसुंओ को भी ढलने नही दिया

अंजुम बाराबंकवी

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