लोग बहरे है इन्हे दिल की सुनाया न करो
सोमवार, 9 फ़रवरी 2009
लोग बहरे है इन्हे दिल की सुनाया न करो
बंद दरवाजों पे आवाज़ लगाया न करो
पत्थरो से कहाँ मिलती है मुरादे दिल की
तुम मजारो पे चिरागों को जलाया न करो
वक्त की आंधी उडाकर न कही ले जाए
रेत पर तुम मेरी तस्वीर बनाया न करो
उमर भर कौन रहा साथ किसी के ऐ ' अश्क '
तुम मेरी याद में अब अश्क बहाया न करो
अश्क अम्बालवी
9 फ़रवरी 2009 को 1:53 am बजे
पत्थरो से कहाँ मिलती है मुरादे दिल की
तुम मजारो पे चिरागों को जलाया न करो
lajawab...waah...
neeraj
9 फ़रवरी 2009 को 2:36 am बजे
Waah ! Waah ! Waah !
Kya baat kahi hai,lajawaab ! Sundar gazal.....
9 फ़रवरी 2009 को 4:02 am बजे
bahut purani yade dohara dee aapne