शाम जब भी परिंदे चहकने लगे
बुधवार, 11 फ़रवरी 2009
शाम जब भी परिंदे चहकने लगे
मेरी पलकों पे जुगनू चमकने लगे
उसके आने की बस एक ख़बर आई थी
और कलाई के कंगन खनकने लगे
जरफ है लाज़मी आदमी के लिए
तुमने पी भी नही और बहकने लगे
अंजुम रहबर
आज तक जो कुछ भी देखा, सुना, पढ़ा, जाना, समझा वो सब कुछ जो यहाँ से वहां से जाने कहाँ कहाँ से जमा किया वो सब कुछ इस ब्लॉग पे डाल रहा हूँ. वैसे तो मेरी कोशिश होगी की हर रचना के साथ उसके रचनाकार का नाम भी दे दू लेकिन अगर कभी ऐसा न कर सको तो अपना दोस्त समझ के माफ़ कर दीजियेगा.
शाम जब भी परिंदे चहकने लगे
मेरी पलकों पे जुगनू चमकने लगे
उसके आने की बस एक ख़बर आई थी
और कलाई के कंगन खनकने लगे
जरफ है लाज़मी आदमी के लिए
तुमने पी भी नही और बहकने लगे
Posted in अंजुम रहबर by Rahul kundra
Email this postCheck Page Rank of any web site pages instantly: |
This free page rank checking tool is powered by Page Rank Checker service |
11 फ़रवरी 2009 को 2:26 am बजे
Waah ! Sundar...
11 फ़रवरी 2009 को 2:39 am बजे
वाह बहुत सुन्दर गज़ल लिखी है।
11 फ़रवरी 2009 को 3:13 am बजे
बहुत खूब सुन्दर है बधाई