इधर उधर कई मंजिल है, चल सको तो चलो
शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2009
इधर उधर कई मंजिल है, चल सको तो चलो
बने-बनाये है सांचे, जो ढल सको तो चलो
यहाँ किसी को कोई रास्ता नही देता
मुझे गिरा के अगर तुम संभल सको तो चलो
हरेक सफर को है महफूज रास्तो की तलाश
हिफाज़तो की रिवायत बदल सको तो चलो
कही नही कोई सूरज, धुआ धुआ है फिजा
ख़ुद आपने आप से बाहर निकल सको तो चलो
निदा फाजली
6 फ़रवरी 2009 को 3:54 am बजे
अच्ची गज़ल प्रेषित की है।
6 फ़रवरी 2009 को 4:25 am बजे
सुंदर रचना....
6 फ़रवरी 2009 को 4:56 am बजे
sach bahut achha laga ye gazal padhke.