कितनी दीवारे उठी है एक घर के दरम्यां
बुधवार, 18 फ़रवरी 2009
कितनी दीवारे उठी है एक घर के दरम्यां
घर कही गम हो गया है दिवार-ओ-दर के दरम्यां
वार वो करते रहेगे ज़ख्म हम सहते रहेगे
है यही रिश्ता पुराना संग ओ सर के दरम्यां
मखमूर सय्य्दी
आज तक जो कुछ भी देखा, सुना, पढ़ा, जाना, समझा वो सब कुछ जो यहाँ से वहां से जाने कहाँ कहाँ से जमा किया वो सब कुछ इस ब्लॉग पे डाल रहा हूँ. वैसे तो मेरी कोशिश होगी की हर रचना के साथ उसके रचनाकार का नाम भी दे दू लेकिन अगर कभी ऐसा न कर सको तो अपना दोस्त समझ के माफ़ कर दीजियेगा.
कितनी दीवारे उठी है एक घर के दरम्यां
घर कही गम हो गया है दिवार-ओ-दर के दरम्यां
वार वो करते रहेगे ज़ख्म हम सहते रहेगे
है यही रिश्ता पुराना संग ओ सर के दरम्यां
Posted in मखमूर सय्य्दी by Rahul kundra
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18 फ़रवरी 2009 को 4:10 am बजे
बहुत खूब ...
18 फ़रवरी 2009 को 7:22 am बजे
कितनी दीवारे उठी है एक घर के दरम्यां
घर कही गम हो गया है दिवार-ओ-दर के
बहुत खूब ...