यह मकाम इक रोज़ दौरान-ऐ-सफर भी आएगा  

रविवार, 1 फ़रवरी 2009

यह मकाम इक रोज़ दौरान--सफर भी आएगा
अपने घर से चल पड़े तो उसका घर भी आएगा

शाम होने को है फ़िर रुके उस राह पर
सुबह जो गुजरा था वो अब लौट कर भी आएगा

तुम फसील--शब् को छु -छु कर यु ही चलते रहो
हाथ जब दिवार पर होंगे तो दर भी आएगा

आजाद गुलाटी

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