तीरगी जैसे जरूरी, रौशनी के वास्ते
शनिवार, 7 फ़रवरी 2009
तीरगी जैसे जरूरी, रौशनी के वास्ते
दर्द भी बेहद जरूरी है, खुशी के वास्ते
अहमियत ही हो न जाए जिंदगी की कम कही
मौत भी बेहद जरूरी, हर किसी के वास्ते
लोग नंगे पाव भी ले सिख चलना इसलिए
छाव भी बेहद जरूरी, जिंदगी के वास्ते
वास्तव में है वही शायर, जो दिल से लिख रहा
पीर भी बेहद जरूरी, शायरी के वास्ते
खो कही पहचान ही न जाए उसकी दोस्तों
नीर भी बेहद जरूरी, उस नदी के वास्ते
उब जाएगा अकेला हलचलों के दौर में
आदमी बेहद जरूरी, आदमी के वास्ते
घमंडी लाल अग्रवाल
7 फ़रवरी 2009 को 5:23 am बजे
उब जाएगा अकेला हलचलों के दौर में
आदमी बेहद जरूरी, आदमी के वास्ते
बेहतरीन....बहुत सही और खूबसूरत ग़ज़ल...शुक्रिया आपका...पढ़वाने के लिए.
नीरज