आदमी आदमी को क्या देगा  

मंगलवार, 31 मार्च 2009

आदमी आदमी को क्या देगा
जो भी देगा इसे खुदा देगा

जितना देगा तू उसके बन्दों को
वो तुम्हे उससे भी सवा देगा

जब दुआ में तेरी असर ही नही
बद्दुआ तू किसी को क्या देगा

दाग कितने है तेरे चेहरे पर
आइना देख सब दिखा देगा

छोड़ कर मुझको इतना खुश हो
उमर भर दुःख ये हादिसा देगा

जिंदगी दी है जिसने 'अश्क' मुझे
जीने का भी वो हौसला देगा

अश्क अम्बालवी

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बाहर से यारी भीतर मनमुटाव है  

शनिवार, 28 मार्च 2009

बाहर से यारी भीतर मनमुटाव है
यहाँ के चलन का अजब रख-रखाव है

छोड़ जाए महफिल तो भूल जाते है लोग
अपनों का अपनों पर ऐसा ही घाव है

अनेको तूफान तो सतह पर खामोश है
समंदर में लगता बहुत गहरा तनाव है

तन्हा हुए इश्क में दुनिया से बेखबर
ठोकरे खाई बेशुमार फ़िर भी झुकाव है

जितना भी सहा जाए उतना ही मज़ा आए
ऐसे मेरे कातिल का मुझ पर कसाव है

सांसो की आंच पकती ही जाती है बेखबर
सीने में जैसे मेरे कोई जलता अलाव है

भोला वाघमरे

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ये आलम शौक का देखा न जाए  

शुक्रवार, 27 मार्च 2009

ये आलम शौक का देखा जाए
वो बुत है या खुदा देखा जाए

ये मेरे साथ कैसी रौशनी है
के मुझसे रास्ता देखा जाए

ये किन नजरो से तुने आज देखा
की तेरा देखना देखा जाए

हमेशा के लिए मुझसे बिछ्डा जा
ये मंज़र बारहा देखा जाए

ग़लत है जो सुना, पर आजमा कर
तुझे बेवफा देखा जाए

ये महरूमी वही पासे-वफ़ा है
कोई तेरे सिवा देखा जाए

यही तो आशना बनते है आख़िर
कोई आशना देखा जाए

फ़राज़ अपने सिवा कौन है तेरा
तुझे तुझ से जुदा देखा जाए

अहमद फ़राज़

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मायूस हो तेरी महफिल से कोई फ़िर गया  

गुरुवार, 26 मार्च 2009

मायूस हो तेरी महफिल से कोई फ़िर गया
रात के आँचल से एक सितारा झर गया

एक लम्हे के लिए उमर भर बैठा रहा
और फ़िर वो शख्स जाने किधर गया

तमाम रास्ते दौड़ता अकेला कम्बखत
दरिया पहाड़ छोड़ सीधा समंदर गया

चोगान में आग बुझाये बैठा है काफिला
रास्ता जिसका सेहरा की रेत से भर गया

' प्लेटो ' पूछता रहा उससे पता अपना
बुलबुल बोली ' जिप्सी भी कभी घर गया '

अशोक प्लेटो

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बाहर से मुझे नफरत थी, पर दिल में मेरे बसता था  

बाहर से मुझे नफरत थी, पर दिल में मेरे बसता था
वो पागल - सा इक लड़का, जो देख के मुझको हसता था

क्यो ठुकराया मांग को उसकी, सोच के अब पछताती हूँ
दिल के बदले दिल माँगा था, सोदा कितना सस्ता था

किस्से पूछू कैसे पूछू, क्यों नही देता अब वो दिखाई
रोज़ गुजरता था वो इधर से, उसका ये ही रस्ता था

तुमने छोड़ा मुझको मैंने शहर तुम्हारा छोड़ दिया
घूरती थी हर शक्स की नज़रे, हर कोई मुझ पर हसता था

दर्द छुपाकर जीना उसकी, 'अश्क' पुरानी आदत थी
भीतर-भीतर रोता था वो, बाहर-बाहर हसता था

अश्क अम्बालवी

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जिंदा लबो पे ये ताले कैसे  

बुधवार, 25 मार्च 2009

जिंदा लबो पे ये ताले कैसे
ये जलसा गुंगो के हवाले कैसे

चोटी तक पहुचा ज़हर तो एहसास हुआ
ये साँप आस्तीन में हमने पाले कैसे

घर से नही निकले जो लोग अभी तलक
ताज्जुब है उनके पैरो में छाले कैसे

जूते और टोपी में ताल्लुक ठीक नही
कोई शख्स इरादों को संभाले कैसे

सिक्के के दोनों पहलू एक ही जैसे है
हवाओ में इसको कोई उछाले कैसे

सुना है फुटपाथ पे खुदा सोता है
इस सहर में मस्जिद ये शिवाले कैसे

सनम दहिया

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आँखों में जिसके खौफ का साया बना रहा  

मंगलवार, 24 मार्च 2009

आँखों में जिसके खौफ का साया बना रहा
वो शख्स इसके बाद भी अपना बना रहा

अपने तमाम रिश्ते ही छुटे हुए लगे
मेरा वजूद मुझसे ही तन्हा बना रहा

अब उसके इन्तिखाब का होता कहाँ यकी
दिल में था, जिसके ख्वाब का चेहरा बना रहा

शामिल रही सफर में भी अपनी उदासिया
चाहत के नंगे पाव का सहारा बना रहा

खुरेजियो के दौर से गुजरा किए मगर
फ़िर भी चमन में अमन का दवा बना रहा

अनिरुद्ध सिन्हा

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दर्द की स्याही से लिखा ये मेरा नसीब था  

दर्द की स्याही से लिखा ये मेरा नसीब था
बिक गई मेरी मोहब्बत में गरीब था

पल भर को तो हम भी संभल पाए थे
गुजरा ही वो हादसा हम पर अजीब था

तमाम उमर जिंदगी समझ जिसे चाहा
वो आखिरी सफर में भी मेरे करीब था

खुशिया बाट्ता रहा में सबसे जिंदगी की
अब गम के अंधेरो में की शरीक था

दिल, दुनिया, देवता, सब पत्थर के है
सुना है हमने कहता एक फ़कीर था

कुनाल महाजन

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अपने-आपको सताया न करो  

अपने-आपको सताया करो
दिल किसी से लगाया करो

मोहब्बत करो शौक से करो
फ़िर बाद में पछताया करो

फूक डाले जो अपना ही घर
ऐसे चिरागों को जलाया करो

बहने दो आँखों से आसू
दर्द सिने में छुपाया करो

किसी की जान भी जा सकती है
सबके सामने मुस्कराया करो

दिल देने का गर हौसला रखते हो
जान देने से घबराया करो

तुम भी पागल हो जाओगे ' आमीन '
दिल--नादान को समझाया करो

मौ. आमीन खाकी

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शब-ऐ-गम से जो हो खौफ अगर  

सोमवार, 23 मार्च 2009

शब--गम से जो हो खौफ अगर
इक शमा--उम्मीद जलाया कीजिये

यू तन्हाइयो से कभी घबराइए
किसी गैर को अपना बनाया कीजिये

कीजिये गिला औरो की बेवफाई का
आप अपना वायदा निभाया कीजिये

तय कीजिये गैरो की खुशी खातिर
अपनी हसी में गम को छुपाया कीजिये

चाहे कभी जो कोई दोस्त बनना
मुस्करा के पहला कदम बढाया कीजिये

ख़ुद हसिये, औरो को हसाइए
यू दिलो की विरानिया मिटाया कीजिये

रोहित ऋषि

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मुझसे वाही हालात पुराने मांगे  

मुझसे वही हालात पुराने मांगे
जिंदगी जीने के बहाने मांगे

अपनी शाम का एक लम्हा तो दे
हमने कब तुझसे ज़माने मांगे

अजीब शौक है ज़माना यारो
हम फकीरों से ठिकाने मांगे


में गर्दिश में गुनगुना क्या दिया
वो खुशियों के तराने मांगे

में ख़ुद एक कहानी हूँ या रब
और वो मुझसे फ़साने मांगे

चरणजीत

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अगर आप हमको मिल गए होते  

रविवार, 22 मार्च 2009

अगर आप हमको मिल गए होते
बाग़ में फूल खिल गए होते

आपने यू ही घूर कर देखा
होंठ तो यू भी सिल गए होते

काश हम आप इस तरह मिलते
जैसे दो वक्त मिल गए होते

हमको अहद--खिरद मिले ही नही
वरना कुछ मुनफईल मिल गए होते

उनकी आँखे ही कज लगर थी ' अदम '
दिल के परदे तो हिल गए होते

अदम

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दुनिया समझ रही थी शनासाइयों में था  

दुनिया समझ रही थी शनासाइयों में था
लेकिन वो मेरी रूह की गहराइयों में था

कहता था मेरा साथ निभाएगा उमर भर
यह राज़ अब खुला की वो हरजाइयो में था

चेहरे बदल-बदल के वो देता रहा फरेब
जो गुम मेरे ख्याल की परछाइयो में था

वो कातिलो का जश्न था कब थी मेरी बारात
मातम किसी की मौत का शह्ननाइयो में था

' शाहीन ' उसको रेत में छोड़ आई थी मगर
लगता था वो माकन की अगंनाईयो में था

रेहाना शाहीन

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आँखों में रात ख्वाब का खंज़र उतर गया  

शनिवार, 21 मार्च 2009

आँखों में रात ख्वाब का खंज़र उतर गया
यानि सहर से पहले चिरागे सहर गया

इस फ़िक्र ही में अपनी तो गुजरी तमाम उमर
में उसको था पसंद तो क्यो छोड़ कर गया

आंसू मेरे तो मेरे ही दामन में आए थे
आकाश कैसे इतने सितारों से भर गया

कोई दुआ कभी तो हमारी कबूल कर
वरना कहेगे लोग, दुआ से असर गया

शीन काफ निजाम

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मोहब्बत में या रब यह कैसा मज़ा है  

मोहब्बत में या रब यह कैसा मज़ा है
नशा ही, नशा ही, नशा ही, नशा है

यह आशिक की तक़दीर किसने है लिखी
गिला ही, गिला ही, गिला ही, गिला है

गुनाहों का तेरे खुदा को तो बंदे
पता ही, पता ही, पता ही, पता है

जन्नत से जब से निकला है आदम
सज़ा ही, सज़ा ही, सज़ा ही, सज़ा है

निजाम--दहर पे नज़र तो डालो
खुदा ही, खुदा ही, खुदा ही, खुदा है

अजित दियोल

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ऊपर क्या, नीचे भी देखा करिए साहिब  

शुक्रवार, 20 मार्च 2009

ऊपर क्या, नीचे भी देखा करिए साहिब
अपनी परछाई से कभी डरिए साहिब

पुरी उमर आदमी बनना हमने सिखा
अर्थ देवता का हमसे मत कहिये साहिब

वो जो हाथ जोड़ कर रोज़ मिला करते है
उनके हाथो में तलवार रखिए साहिब

सरिता के तट पर तो चल कर सबने देखा
सरिता की लहरों पर भी कुछ चलिए साहिब

रोने से कुछ बात नही बनती दुनिया में
हासिए साहिब. हासिए साहिब,हासिए साहिब,

घमंडीलाल अग्रवाल




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बनती-बिगड़ती डगर क्युं है  

बनती-बिगड़ती डगर क्युं है
मेरे ख्वाबो में तेरा घर क्युं है

यू तो शहर खंडहर निकला
कब्रिस्तान संगमरमर क्युं है

आपके हाथो में तो गुलेल भी नही
पंछी का मगर गिरा पर क्युं है

सफर तो तय कर लिया लेकिन
कश्ती को साहिल से डर क्युं है

' प्लेटो ' के लिए खुल गए किवाड़
मेरे लिए बंद तेरा डर क्युं है

( अशोक प्लेटो )

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कातिल से अपनी जान का सौदा करेगे हम  

गुरुवार, 19 मार्च 2009

कातिल से अपनी जान का सौदा करेगे हम
मकतल में फ़िर लहू से उजाला करेंगे हम

शीशे में अपने आप को देखा करेगे हम
फ़िर दुसरो पे तंज उछाला करेगे हम

यादो की कहकशा से पुकारोगे जब हमे
ख्वाबो के रथ पर बैठ के आया करेगे हम

( रेहाना शाहीन )

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बिखरे मोती  

करीब इतना ही रखो की दिल बहल जाए
अब इस कदर भी चाहो की दम निकल जाए

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माजी की हर इक चोट उभर आई है  

माजी की हर इक चोट उभर आई है
यह दर्द मेरी जान का तमन्नाई है

जाओ किसी तरह कि ता-हदे नज़र
तन्हाई है, तनहाई है, तनहाई है

(शीन काफ निजाम)

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तेरी खुशबू से मेरी दुनिया का महकना अच्छा था  

बुधवार, 18 मार्च 2009

तेरी खुशबू से मेरी दुनिया का महकना अच्छा था
तेरे वजूद में मेरी दुनिया का सिमटना अच्छा था

लौट आओ चारासाज़ लेकर अपनी तमाम राहते
तेरी याद में इस दिल का तड़पना अच्छा था

जिंदगी की उलझने निहायत बेमजा हो चली है
जहान में सिर्फ़ तेरी जुल्फ का उलझना अच्छा था

इंसानों की भीड़ में हर चहेरा अजनबी है
ख्वाबो में तेरे साये से लिपटना अच्छा था

दिल बार-बार कह रहा है ये कैसी मंजिल है
इससे तो तेरी आरजू में भटकना अच्छा था

दुष्यंत

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हर तरफ़ आह आह है जैसे  

हर तरफ़ आह आह है जैसे
ये जहां कत्लगाह है जैसे

अब सदाकत गुनाह है जैसे
झूठ से ही निबाह है जैसे

इश्क की इब्तिदा में ऐसा लगा
सीधी-सादी सी राह है जैसे

हर किसी ने किया यहाँ सिजदा
आरजू खानकाह है जैसे

खौफ से हम सिमट गए इतना
कोई फरदे-तबाह है जैसे

पेश आता है यू अदावत से
वो मुखालिफ गवाह है जैसे

प्रवीण नाकाम

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आँखों आँखों में बात हुई जाती है  

मंगलवार, 17 मार्च 2009

आँखों आँखों में बात हुई जाती है
आज उनसे मुलाकात हुई जाती है

उठती-गिरती ये पलक, बेकल वो नज़र
हाय मोहब्बत भरा पैगाम लती है

यूं तो हर गुल है मोहब्बत के काबिल
इस गुल से ही क्यो मात हुई जाती है

लाख छुपाना चाहा जज़्बात को लेकिन
बात छुपती नही खुलती चली जाती है

है अजीबो-गरीब मंज़र ये मोहब्बत का
इक मुसलमा से बुतपरस्ती हुई जाती है

अलविदा तुमसे है इस वादे के साथ
आज जिंदगी तुम्हारी हुई जाती है

विष्णु सक्सेना

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बुत परस्ती सिखा गया मुझको  

बुत परस्ती सिखा गया मुझको
दर्द पत्थर बना गया मुझको

जिंदगी मौत के हिंडोले पर
आज फ़िर प्यार गया मुझको

नींद उचटी तो ख्वाब टूटेगे
थपकियों में बता गया मुझको

साज़ की कब्र में दफ़न सरगम
कौन चुपचाप गा गया मुझको

में नदी की तरह उछलता था
इक समंदर निगल गया मुझको

भीड़ के भी उसूल होते है
शोर में भी सुना गया मुझको

सत्य प्रकाश उप्पल

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वो सोच वो जज़्बात कहाँ से लाऊ  

सोमवार, 16 मार्च 2009

वो सोच वो जज़्बात कहाँ से लाऊ
गुम गुजश्ता करामात कहाँ से लाऊ
रात के बड़ते हुए तीर सायो
गुजरे हुए लम्हात कहाँ से लाऊ

(शीन काफ निजाम )

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अल्लामा इक़बाल  

खामोश--दिल भरी महफिल
में चिल्लाना नही अच्छा
अदब पहला करीना है
मोहब्बत के करीनो में

(अल्लामा इक़बाल )

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कोई दोस्त है न रकीब है  

कोई दोस्त है रकीब है
तेरा शहर कितना अजीब है
कोई दोस्त है.........................
वो जो इश्क था वो जूनून था
ये जो हिजर है ये नसीब है
कोई दोस्त है.........................
यहाँ किसका चेहरा पड़ा करू
यहाँ कौन इतना करीब है

कोई दोस्त है.........................
यहाँ किस से कहू मेरे साथ चल
यहाँ सब के सर पे सलीब है
कोई दोस्त है.........................
तुझे देख कर में हूँ सोचता
तू हबीब है या रकीब है

कोई दोस्त है.........................
कोई दोस्त है.........................
तेरा शहर कितना....................
कोई दोस्त है.........................

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तमाम रिश्तो से इंकार करना चाहते है  

शनिवार, 7 मार्च 2009

तमाम रिश्तो से इंकार करना चाहते है
हम अपनी जात को दिवार करना चाहते है

हमारी जिंदगी जीना कोई मजाक न था
सो हम तुम्हे भी ख़बरदार करना चाहते है

अजीज़ मिलने लगे है बड़े खलूस के साथ
ये लोग कोई नया वार करना चाहते है

नसीम निकहत

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मेरी आँखों में कोई ख्वाब नही  

मेरी आँखों में कोई ख्वाब नही
मेरे हाथो में कोई गुलाब नही

इस सेहरा में कौन रहता है
चाँद के पास कोई जवाब नही


उसने पीछे मुड कर भी नही देखा
मैंने तो माँगा कोई हिसाब नही

ये खामोशी मुझसे टूटती नही
मेरे हाथो में कोई रकाब नही

दरिया अपने में ही डूब गया
कैसे कह दू कोई सैलाब नही

अशोक प्लेटो

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