आँखों में रात ख्वाब का खंज़र उतर गया
शनिवार, 21 मार्च 2009
आँखों में रात ख्वाब का खंज़र उतर गया
यानि सहर से पहले चिरागे सहर गया
इस फ़िक्र ही में अपनी तो गुजरी तमाम उमर
में उसको था पसंद तो क्यो छोड़ कर गया
आंसू मेरे तो मेरे ही दामन में आए थे
आकाश कैसे इतने सितारों से भर गया
कोई दुआ कभी तो हमारी कबूल कर
वरना कहेगे लोग, दुआ से असर गया
शीन काफ निजाम
21 मार्च 2009 को 5:26 am बजे
कोई दुआ कभी तो हमारी कबूल कर
वरना कहेगे लोग, दुआ से असर गया
तेरी बेबाक आवाज़ सुकर हम खिल पड़े
तेरा हर एक लफ्ज़ निजाम शहर हुआ
अपनी अपनी डगर
वाह