ऊपर क्या, नीचे भी देखा करिए साहिब  

शुक्रवार, 20 मार्च 2009

ऊपर क्या, नीचे भी देखा करिए साहिब
अपनी परछाई से कभी डरिए साहिब

पुरी उमर आदमी बनना हमने सिखा
अर्थ देवता का हमसे मत कहिये साहिब

वो जो हाथ जोड़ कर रोज़ मिला करते है
उनके हाथो में तलवार रखिए साहिब

सरिता के तट पर तो चल कर सबने देखा
सरिता की लहरों पर भी कुछ चलिए साहिब

रोने से कुछ बात नही बनती दुनिया में
हासिए साहिब. हासिए साहिब,हासिए साहिब,

घमंडीलाल अग्रवाल




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