बनती-बिगड़ती डगर क्युं है
शुक्रवार, 20 मार्च 2009
बनती-बिगड़ती डगर क्युं है
मेरे ख्वाबो में तेरा घर क्युं है
यू तो शहर खंडहर निकला
कब्रिस्तान संगमरमर क्युं है
आपके हाथो में तो गुलेल भी नही
पंछी का मगर गिरा पर क्युं है
सफर तो तय कर लिया लेकिन
कश्ती को साहिल से डर क्युं है
' प्लेटो ' के लिए खुल गए किवाड़
मेरे लिए बंद तेरा डर क्युं है
( अशोक प्लेटो )
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