तेरी खुशबू से मेरी दुनिया का महकना अच्छा था
बुधवार, 18 मार्च 2009
तेरी खुशबू से मेरी दुनिया का महकना अच्छा था
तेरे वजूद में मेरी दुनिया का सिमटना अच्छा था
लौट आओ चारासाज़ लेकर अपनी तमाम राहते
तेरी याद में इस दिल का तड़पना अच्छा था
जिंदगी की उलझने निहायत बेमजा हो चली है
जहान में सिर्फ़ तेरी जुल्फ का उलझना अच्छा था
इंसानों की भीड़ में हर चहेरा अजनबी है
ख्वाबो में तेरे साये से लिपटना अच्छा था
दिल बार-बार कह रहा है ये कैसी मंजिल है
इससे तो तेरी आरजू में भटकना अच्छा था
दुष्यंत
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