मोहब्बत में या रब यह कैसा मज़ा है  

शनिवार, 21 मार्च 2009

मोहब्बत में या रब यह कैसा मज़ा है
नशा ही, नशा ही, नशा ही, नशा है

यह आशिक की तक़दीर किसने है लिखी
गिला ही, गिला ही, गिला ही, गिला है

गुनाहों का तेरे खुदा को तो बंदे
पता ही, पता ही, पता ही, पता है

जन्नत से जब से निकला है आदम
सज़ा ही, सज़ा ही, सज़ा ही, सज़ा है

निजाम--दहर पे नज़र तो डालो
खुदा ही, खुदा ही, खुदा ही, खुदा है

अजित दियोल

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