मायूस हो तेरी महफिल से कोई फ़िर गया  

गुरुवार, 26 मार्च 2009

मायूस हो तेरी महफिल से कोई फ़िर गया
रात के आँचल से एक सितारा झर गया

एक लम्हे के लिए उमर भर बैठा रहा
और फ़िर वो शख्स जाने किधर गया

तमाम रास्ते दौड़ता अकेला कम्बखत
दरिया पहाड़ छोड़ सीधा समंदर गया

चोगान में आग बुझाये बैठा है काफिला
रास्ता जिसका सेहरा की रेत से भर गया

' प्लेटो ' पूछता रहा उससे पता अपना
बुलबुल बोली ' जिप्सी भी कभी घर गया '

अशोक प्लेटो

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