बाहर से मुझे नफरत थी, पर दिल में मेरे बसता था
गुरुवार, 26 मार्च 2009
बाहर से मुझे नफरत थी, पर दिल में मेरे बसता था
वो पागल - सा इक लड़का, जो देख के मुझको हसता था
क्यो ठुकराया मांग को उसकी, सोच के अब पछताती हूँ
दिल के बदले दिल माँगा था, सोदा कितना सस्ता था
किस्से पूछू कैसे पूछू, क्यों नही देता अब वो दिखाई
रोज़ गुजरता था वो इधर से, उसका ये ही रस्ता था
तुमने छोड़ा मुझको मैंने शहर तुम्हारा छोड़ दिया
घूरती थी हर शक्स की नज़रे, हर कोई मुझ पर हसता था
दर्द छुपाकर जीना उसकी, 'अश्क' पुरानी आदत थी
भीतर-भीतर रोता था वो, बाहर-बाहर हसता था
26 मार्च 2009 को 3:40 am बजे
बाहर से मुझे नफरत थी, पर दिल में मेरे बसता था
वो पागल - सा इक लड़का, जो देख के मुझको हसता था
dil ki baat esse hi aati hai lab par
26 मार्च 2009 को 3:51 am बजे
क्यो ठुकराया मांग को उसकी, सोच के अब पछताती हूँ
दिल के बदले दिल माँगा था, सोदा कितना सस्ता था...
इस नायाब नज़्म की तारीफ करना चाँद शब्दों में संभव नहीं है ...............बहुत ही खूबसूरत अहसासों को पिरोया है आपने.............. बधाई