ये आलम शौक का देखा न जाए
शुक्रवार, 27 मार्च 2009
ये आलम शौक का देखा न जाए
वो बुत है या खुदा देखा न जाए
ये मेरे साथ कैसी रौशनी है
के मुझसे रास्ता देखा न जाए
ये किन नजरो से तुने आज देखा
की तेरा देखना देखा न जाए
हमेशा के लिए मुझसे बिछ्डा जा
ये मंज़र बारहा देखा न जाए
ग़लत है जो सुना, पर आजमा कर
तुझे ऐ बेवफा देखा न जाए
ये महरूमी वही पासे-वफ़ा है
कोई तेरे सिवा देखा न जाए
यही तो आशना बनते है आख़िर
कोई न आशना देखा न जाए
फ़राज़ अपने सिवा कौन है तेरा
तुझे तुझ से जुदा देखा न जाए
अहमद फ़राज़
27 मार्च 2009 को 7:39 am बजे
ye kin aankhon se tune dekha .....waah