माजी की हर इक चोट उभर आई है
गुरुवार, 19 मार्च 2009
माजी की हर इक चोट उभर आई है
यह दर्द मेरी जान का तमन्नाई है
आ जाओ किसी तरह कि ता-हदे नज़र
तन्हाई है, तनहाई है, तनहाई है
(शीन काफ निजाम)
आज तक जो कुछ भी देखा, सुना, पढ़ा, जाना, समझा वो सब कुछ जो यहाँ से वहां से जाने कहाँ कहाँ से जमा किया वो सब कुछ इस ब्लॉग पे डाल रहा हूँ. वैसे तो मेरी कोशिश होगी की हर रचना के साथ उसके रचनाकार का नाम भी दे दू लेकिन अगर कभी ऐसा न कर सको तो अपना दोस्त समझ के माफ़ कर दीजियेगा.
माजी की हर इक चोट उभर आई है
यह दर्द मेरी जान का तमन्नाई है
आ जाओ किसी तरह कि ता-हदे नज़र
तन्हाई है, तनहाई है, तनहाई है
Posted in शीन काफ निजाम by Rahul kundra
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