आँखों में जिसके खौफ का साया बना रहा  

मंगलवार, 24 मार्च 2009

आँखों में जिसके खौफ का साया बना रहा
वो शख्स इसके बाद भी अपना बना रहा

अपने तमाम रिश्ते ही छुटे हुए लगे
मेरा वजूद मुझसे ही तन्हा बना रहा

अब उसके इन्तिखाब का होता कहाँ यकी
दिल में था, जिसके ख्वाब का चेहरा बना रहा

शामिल रही सफर में भी अपनी उदासिया
चाहत के नंगे पाव का सहारा बना रहा

खुरेजियो के दौर से गुजरा किए मगर
फ़िर भी चमन में अमन का दवा बना रहा

अनिरुद्ध सिन्हा

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