आँखों में जिसके खौफ का साया बना रहा
मंगलवार, 24 मार्च 2009
आँखों में जिसके खौफ का साया बना रहा
वो शख्स इसके बाद भी अपना बना रहा
अपने तमाम रिश्ते ही छुटे हुए लगे
मेरा वजूद मुझसे ही तन्हा बना रहा
अब उसके इन्तिखाब का होता कहाँ यकी
दिल में था, जिसके ख्वाब का चेहरा बना रहा
शामिल रही सफर में भी अपनी उदासिया
चाहत के नंगे पाव का सहारा बना रहा
खुरेजियो के दौर से गुजरा किए मगर
फ़िर भी चमन में अमन का दवा बना रहा
अनिरुद्ध सिन्हा
25 मार्च 2009 को 2:46 am बजे
अपने तमाम रिश्ते ही छुटे हुए लगे
मेरा वजूद मुझसे ही तन्हा बना रहा
दिल से लिखा हुआ लगता है ....
25 मार्च 2009 को 4:29 am बजे
सही सोच है आपकी...!.आजकल यही टाइम चल रहा है..तनहा तनहा सा लगता है.......