जिंदा लबो पे ये ताले कैसे
बुधवार, 25 मार्च 2009
जिंदा लबो पे ये ताले कैसे
ये जलसा गुंगो के हवाले कैसे
चोटी तक पहुचा ज़हर तो एहसास हुआ
ये साँप आस्तीन में हमने पाले कैसे
घर से नही निकले जो लोग अभी तलक
ताज्जुब है उनके पैरो में छाले कैसे
जूते और टोपी में ताल्लुक ठीक नही
कोई शख्स इरादों को संभाले कैसे
सिक्के के दोनों पहलू एक ही जैसे है
हवाओ में इसको कोई उछाले कैसे
सुना है फुटपाथ पे खुदा सोता है
इस सहर में मस्जिद ये शिवाले कैसे
सनम दहिया
25 मार्च 2009 को 3:11 am बजे
सुना है फुटपाथ पे खुदा सोता है
इस सहर में मस्जिद ये शिवाले कैसे
अच्छा लिखा है।
25 मार्च 2009 को 4:21 am बजे
हर एक शेर में समुचा उपन्यास लिख दिया आने .... वाकई कबीले तारीफ है
25 मार्च 2009 को 7:52 am बजे
वाह !!!लाजवाब !!! हरेक शेर मन को छू गए..
जितनी तारीफ की जाय बहुत कम है...