जिंदा लबो पे ये ताले कैसे  

बुधवार, 25 मार्च 2009

जिंदा लबो पे ये ताले कैसे
ये जलसा गुंगो के हवाले कैसे

चोटी तक पहुचा ज़हर तो एहसास हुआ
ये साँप आस्तीन में हमने पाले कैसे

घर से नही निकले जो लोग अभी तलक
ताज्जुब है उनके पैरो में छाले कैसे

जूते और टोपी में ताल्लुक ठीक नही
कोई शख्स इरादों को संभाले कैसे

सिक्के के दोनों पहलू एक ही जैसे है
हवाओ में इसको कोई उछाले कैसे

सुना है फुटपाथ पे खुदा सोता है
इस सहर में मस्जिद ये शिवाले कैसे

सनम दहिया

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3 टिप्पणियाँ: to “ जिंदा लबो पे ये ताले कैसे

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