मेरी आँखों में कोई ख्वाब नही
शनिवार, 7 मार्च 2009
मेरी आँखों में कोई ख्वाब नही
मेरे हाथो में कोई गुलाब नही
इस सेहरा में कौन रहता है
चाँद के पास कोई जवाब नही
उसने पीछे मुड कर भी नही देखा
मैंने तो माँगा कोई हिसाब नही
ये खामोशी मुझसे टूटती नही
मेरे हाथो में कोई रकाब नही
दरिया अपने में ही डूब गया
कैसे कह दू कोई सैलाब नही
अशोक प्लेटो
7 मार्च 2009 को 2:06 am बजे
इस सेहरा में कौन रहता है
चाँद के पास कोई जवाब नही
बहुत खूब...वाह...इस ग़ज़ल को पढ़कर जगजीत सिंह जी की गयी एक मश हूर ग़ज़ल याद आ गयी...
तुम नहीं, गम नहीं, शराब नहीं
ऐसी तन्हाई का, जवाब नहीं
नीरज
7 मार्च 2009 को 2:08 am बजे
अच्छी रचना है...
उसने पीछे मुड कर भी नही देखा
मैंने तो माँगा कोई हिसाब नही
बहुत खूब... बधाई स्वीकार करें...