कभी तो पतंग उडा के देख
शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2009
कभी तो पतंग उडा के देख
ख्वाब से आँख लड़ा के देख
ख़ुद ठिकाने पहूचा आएगी
हवा को ख़त पकड़ा के देख
हँसेगी दो - चार मुलाकातों में
जिंदगी को जरा चिढा के देख
आइना देखता रह जाएगा
पाव ज़रा लडखडा के देख
घुल-मिल जाएगा हवाओ में
परिंदे को ज़रा उडा के देख
अशोक प्लेटो
27 फ़रवरी 2009 को 3:09 am बजे
ख़ुद ठिकाने पहूचा आएगी
हवा को ख़त पकड़ा के देख
" bemisaal....."
Regards
27 फ़रवरी 2009 को 4:10 am बजे
बचपन में उड़ाई पतंगों की याद दिला दी यहां।
27 फ़रवरी 2009 को 5:14 am बजे
वाह -वाह, बताना चाहूँगा पतंगबाज़ी हमारा पुराना शौक है
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गुलाबी कोंपलें
27 फ़रवरी 2009 को 9:02 am बजे
ख़ुद ठिकाने पहूचा आएगी
हवा को ख़त पकड़ा के देख
Kamaaaal.lajawaab Waah !!
27 फ़रवरी 2009 को 9:53 am बजे
बहुत सही ... सुंदर रचना।