साहिल पर रुक के सुए समंदर न देखिये
रविवार, 1 फ़रवरी 2009
साहिल पर रुक के सुए समंदर न देखिये
बाहर से अपने आप का मंज़र न देखिये
अपने ही सर के ज़ख्म का कुछ कीजिये इलाज
आया है किस तरफ़ से पत्थर न देखिये
आजाद गुलाटी
आज तक जो कुछ भी देखा, सुना, पढ़ा, जाना, समझा वो सब कुछ जो यहाँ से वहां से जाने कहाँ कहाँ से जमा किया वो सब कुछ इस ब्लॉग पे डाल रहा हूँ. वैसे तो मेरी कोशिश होगी की हर रचना के साथ उसके रचनाकार का नाम भी दे दू लेकिन अगर कभी ऐसा न कर सको तो अपना दोस्त समझ के माफ़ कर दीजियेगा.
साहिल पर रुक के सुए समंदर न देखिये
बाहर से अपने आप का मंज़र न देखिये
अपने ही सर के ज़ख्म का कुछ कीजिये इलाज
आया है किस तरफ़ से पत्थर न देखिये
Posted in आजाद गुलाटी by Rahul kundra
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1 फ़रवरी 2009 को 7:33 am बजे
Good and excelant sher