डूब गई जिंदगी क्यो ज़हर में  

बुधवार, 22 अप्रैल 2009

डूब गई जिंदगी क्यो ज़हर में
होता कोई अपना इस शहर में

चांदनी के पंख कट गए होंगे
इतना अँधेरा था इस दहर में

यह मौसम पगला गया कैसे
धुल एक भी नही इस शज़र में

सर पिटती रही होंगी हवाए
डूब गया सितारा किस नज़र में

यह अचानक कारवा को क्या हुआ
रोने की बात थी इस सफर में

कटेगा कैसे यह अँधेरा दोस्तों
चाँद छोड़ गया बिच डगर में

अशोक प्लेटो

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मुझको उस शाखे गुल से प्यार नही  

मंगलवार, 21 अप्रैल 2009

मुझको उस शाखे गुल से प्यार नही
जिस पे बस गुल ही गुल हो खार नही

मौत का ऐतबार है मुझको
जिंदगी तेरा ऐतबार नही

दोस्त दुश्मन सभी तो छोड़ गए
अब किसी का भी इन्तिज़ार नही

रुसवा हो जाता वरना दुनिया में
बच गया कोई राजदार नही

कट ही जायेगी जिंदगी अश्क
गम कर कोई गम गुसार नही

अश्क अम्बालवी

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वह जान के भी अनजान बना रहा  

वह जान के भी अनजान बना रहा
दिलो का फासला सुनसान बना रहा

कितना जाहिल निकला मेरा दोस्त
रकीब के घर मेहमान बना रहा

यह कैसी मोहबत है अजनबी
ज़ख्म भर गया निशान बना रहा

सैलाब में डूब गया शहर लेकिन
पत्थर का बुत भगवान बना रहा

लुना इच्छरा पूरण भगत
ख्वाब फ़िर भी सलवान बना रहा

अशोक प्लेटो

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कैसे कैसे हादसे सहते रहे  

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009

कैसे कैसे हादसे सहते रहे
फ़िर भी जीते रहे हसते रहे

उसके जाने की उम्मीदे लिए
रास्ता मुड-मुड के हम तकते रहे

वक्त तो गुजरा मगर कुछ इस तरह
हम चिरागों की तरह जलते रहे

कितने चेहरे थे हमारे आस-पास
तुम ही तुम दिल में मगर बसते रहे


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या तो मिट जाइये या मिटा दीजिये  

बुधवार, 15 अप्रैल 2009

या तो मिट जाइये या मिटा दीजिये
कीजिये जब भी सौदा खरा कीजिये

अब जफा कीजिये या वफ़ा कीजिये
आखिरी वक्त है बस दुआ कीजिये

अपने चेहरे से जुल्फे हटा दीजिये
और फ़िर चाँद का सामना कीजिये

हर तरफ़ फूल ही फूल खिल जायेगे
आप ऐसे ही हसते रहा कीजिये

आप की ये हसी जैसे घुंघरू बजे
और क़यामत है क्या ये बता दीजिये

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दोस्ती जब किसी से की जाए, दुश्मनों की भी राय ली जाए  

शनिवार, 11 अप्रैल 2009

दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए

मौत का ज़हर है फिजाओ में
अब कहा जाके साँस ली जाए

बस इसी सोच में हूँ डूबा हुआ
ये नदी कैसे पर की जाए

मेरे माजी के ज़ख्म भरने लगे
आज फ़िर कोई भूल की जाए

बोतले खोल के तो पी बरसो
आज दिल खोल के पी जाए

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चेहरों पर चेहरे लगाते है लोग  

सोमवार, 6 अप्रैल 2009

चेहरों पर चेहरे लगाते है लोग
हस कर गम को छिपाते है लोग

मिलने-जुलने वालो की भीड़ में
कुछ ही साथ निभाते है लोग

सुकून देते है जो साथ रह कर
जाने पर कसक दे जाते है लोग

जिक्र जब होता है बीते लम्हों का
याद बहुत आते है लोग

ग़ज़ल में ढाली है हकीकत ' सर ' ने
तभी तो बहुत सरते है लोग

नाहादिया सर

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तनहा चला हूँ मै रहगुज़र में  

तनहा चला हूँ मै रहगुज़र में
भटक जाऊ कही सफर में

दिल चिराग बन के जला है
अब तो चले आओ मेरे घर में

कोई सुने फरियाद मेरी
पत्थर ही मिले है तेरे शहर में

कहते हो तुम की खुदा याद रखू
तुम ही खुदा हो मेरी नज़र में

गुलो की थी उम्मीद उससे ' दयाल '
खर बिखेर दिए जिसने डगर में

राम दयाल

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धुप छ्त पर जब चडी होगी  

रविवार, 5 अप्रैल 2009

धुप छ्त पर जब चडी होगी
चांदनी पिछवाडे खड़ी होगी

झिलमिला उठी अँधेरी रात
हाथ बच्चे के फुलझडी होगी

पहाडी रात को दौड़ गई
आँख चाँद से जा लड़ी होगी

गाड़ी सिग्नल पर खड़ी होगी
कैसी इन्तिज़ार की घड़ी होगी

अशोक प्लेटो

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ऐ बशर ! ऐ बशर ! ऐ बशर !  

बशर ! बशर ! बशर !
काम कर, काम कर,काम कर

बे खतर , बे खतर. बे खतर
बे समर, बे समर, बे समर,

खौफ है तुझको किस बात का ?
खाक है ये सरापा
तेरा

असलियत है तेरी आत्मा
मौत से जो न होगी फ़ना

जिगर जालंधरी

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