ऐ बशर ! ऐ बशर ! ऐ बशर !
रविवार, 5 अप्रैल 2009
ऐ बशर ! ऐ बशर ! ऐ बशर !
काम कर, काम कर,काम कर
बे खतर , बे खतर. बे खतर
बे समर, बे समर, बे समर,
खौफ है तुझको किस बात का ?
खाक है ये सरापा तेरा
असलियत है तेरी आत्मा
मौत से जो न होगी फ़ना
जिगर जालंधरी
आज तक जो कुछ भी देखा, सुना, पढ़ा, जाना, समझा वो सब कुछ जो यहाँ से वहां से जाने कहाँ कहाँ से जमा किया वो सब कुछ इस ब्लॉग पे डाल रहा हूँ. वैसे तो मेरी कोशिश होगी की हर रचना के साथ उसके रचनाकार का नाम भी दे दू लेकिन अगर कभी ऐसा न कर सको तो अपना दोस्त समझ के माफ़ कर दीजियेगा.
ऐ बशर ! ऐ बशर ! ऐ बशर !
काम कर, काम कर,काम कर
बे खतर , बे खतर. बे खतर
बे समर, बे समर, बे समर,
खौफ है तुझको किस बात का ?
खाक है ये सरापा तेरा
असलियत है तेरी आत्मा
मौत से जो न होगी फ़ना
Posted in जिगर जालंधरी by Rahul kundra
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