तनहा चला हूँ मै रहगुज़र में
सोमवार, 6 अप्रैल 2009
तनहा चला हूँ मै रहगुज़र में
भटक न जाऊ कही सफर में
दिल चिराग बन के जला है
अब तो चले आओ मेरे घर में
कोई न सुने फरियाद मेरी
पत्थर ही मिले है तेरे शहर में
कहते हो तुम की खुदा याद रखू
तुम ही खुदा हो मेरी नज़र में
गुलो की थी उम्मीद उससे ' दयाल '
खर बिखेर दिए जिसने डगर में
राम दयाल
6 अप्रैल 2009 को 5:41 am बजे
बहुत बढिया रचना है।बधाई।
कहते हो तुम की खुदा याद रखू
तुम ही खुदा हो मेरी नज़र में