धुप छ्त पर जब चडी होगी
रविवार, 5 अप्रैल 2009
धुप छ्त पर जब चडी होगी
चांदनी पिछवाडे खड़ी होगी
झिलमिला उठी अँधेरी रात
हाथ बच्चे के फुलझडी होगी
पहाडी रात को दौड़ गई
आँख चाँद से जा लड़ी होगी
गाड़ी सिग्नल पर खड़ी होगी
कैसी इन्तिज़ार की घड़ी होगी
अशोक प्लेटो
आज तक जो कुछ भी देखा, सुना, पढ़ा, जाना, समझा वो सब कुछ जो यहाँ से वहां से जाने कहाँ कहाँ से जमा किया वो सब कुछ इस ब्लॉग पे डाल रहा हूँ. वैसे तो मेरी कोशिश होगी की हर रचना के साथ उसके रचनाकार का नाम भी दे दू लेकिन अगर कभी ऐसा न कर सको तो अपना दोस्त समझ के माफ़ कर दीजियेगा.
धुप छ्त पर जब चडी होगी
चांदनी पिछवाडे खड़ी होगी
झिलमिला उठी अँधेरी रात
हाथ बच्चे के फुलझडी होगी
पहाडी रात को दौड़ गई
आँख चाँद से जा लड़ी होगी
गाड़ी सिग्नल पर खड़ी होगी
कैसी इन्तिज़ार की घड़ी होगी
Posted in अशोक प्लेटो by Rahul kundra
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5 अप्रैल 2009 को 2:37 am बजे
धूप चड़ती नहीं चढती है।
5 अप्रैल 2009 को 6:14 am बजे
बहुत सुन्दर लिखा है।
11 अप्रैल 2009 को 3:02 am बजे
मेरे बहुत प्रिय भाई
अशोक प्लेटो की रचना देने के लिए आभार.
प्लेटो साहब की कविताओं में अनूठा सिम्बॉलोज़्म
मिलता है.
मैं तो उनका अपने बचपन से ही फैन हूँ.
सहसा उनकी कविता का अंश याद आ गया
'अब भले ही उग आई हो घास फिर भी
आप महसूस कर सकते हैं कि आप के
पाँव तले कभी एक पगडंडी थी.
बहुत-सी पुरानी यादें उचका दी हैं आपने.
www.dwijendradwij.blogspot.com