डूब गई जिंदगी क्यो ज़हर में  

बुधवार, 22 अप्रैल 2009

डूब गई जिंदगी क्यो ज़हर में
होता कोई अपना इस शहर में

चांदनी के पंख कट गए होंगे
इतना अँधेरा था इस दहर में

यह मौसम पगला गया कैसे
धुल एक भी नही इस शज़र में

सर पिटती रही होंगी हवाए
डूब गया सितारा किस नज़र में

यह अचानक कारवा को क्या हुआ
रोने की बात थी इस सफर में

कटेगा कैसे यह अँधेरा दोस्तों
चाँद छोड़ गया बिच डगर में

अशोक प्लेटो

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