मुझको उस शाखे गुल से प्यार नही
मंगलवार, 21 अप्रैल 2009
मुझको उस शाखे गुल से प्यार नही
जिस पे बस गुल ही गुल हो खार नही
मौत का ऐतबार है मुझको
जिंदगी तेरा ऐतबार नही
दोस्त दुश्मन सभी तो छोड़ गए
अब किसी का भी इन्तिज़ार नही
रुसवा हो जाता वरना दुनिया में
बच गया कोई राजदार नही
कट ही जायेगी जिंदगी ऐ अश्क
गम न कर कोई गम गुसार नही
अश्क अम्बालवी
21 अप्रैल 2009 को 2:46 am बजे
बहुत सुन्दर रचना प्रेषित की है।बधाई।
21 अप्रैल 2009 को 3:10 am बजे
दोस्त दुश्मन सभी तो छोड़ गए
अब किसी का भी इन्तिज़ार नही
-बढ़िया.
21 अप्रैल 2009 को 5:51 am बजे
ख़ूबसूरत ख़्यालात से लबरेज़ ग़ज़ल