कत्ल करके लग रहे वो बेखबर से  

मंगलवार, 28 जुलाई 2009

कत्ल करके लग रहे वो बेखबर से
लो हमी अब चल दिए है इस शहर से

सीख कर आए कहाँ से ढंग नया तुम
घर जलाते हो निगाहों के शरर से

आंधिया-दर-आंधिया, हरसू अँधेरा
बन गया माहोल कैसा इक ख़बर से

टुकड़े टुकड़े हो चली है जिन्दगानी
है परेशां आदमी अपने सफर से

लिख रहा है हर किसी का वो मुकद्दर
बच नही पाया कोई उसकी नज़र से

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सारे माहौल को जाने क्या हो गया  

सोमवार, 27 जुलाई 2009

सारे माहौल को जाने क्या हो गया
जिंदा रहना भी अब तो सज़ा हो गया

एक मगरूर तारा बहुत दिन हुए
आसमानों से गिर कर फ़ना हो गया

अब किनारों के मिलने की उम्मीद क्या
दोनों जानब बड़ा फासला हो गया

रात भर खेमा--दिल में हलचल रही
जाने बस्ती में क्या हादसा हो गया

सारी दुनिया में जब उसका कोई नही
वो मेरा हो गया तो क्या हो गया

ठोकरे खाते खाते हर इक गाम पर
अब तो 'महक' उसको होसला हो गया

यासमीन महक

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रहनुमा साथ छोड़ देता है  

रहनुमा साथ छोड़ देता है
रास्ता साथ छोड़ता ही नही

नई तहजीब में पला बच्चा
अब खिलोनो से खेलता ही नही

सब की आखो में अश्क भर आए
इक मेरा दर्द बोलता ही नही

धुंधले चेहरों का उफ़ घना जंगल
बच निकलने का रास्ता ही नही

इखतलाफात दूर हो कैसे
वो मेरी तरह सोचता ही नही

यासमीन महक

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आपसे प्यार होता जाता है  

मंगलवार, 21 जुलाई 2009

आपसे प्यार होता जाता है
कम दुश्वार होता जाता है

अक्ल करती है जितनी तदबीरे
इश्क बीमार होता जाता है

कोई लग्जिश यार हो जाए
शौक आजार होता जाता है

जिस कदर हाल--दिल छुपाते है
साफ इज़हार होता जाता है

ज़ख्म--एहसास की खलिश से 'अदम'
फूल भी खर होता जाता है

अब्दूल हमीद 'अदम'

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डूबते तारो ने क्या-क्या रंग दिखलाये हमें  

शुक्रवार, 17 जुलाई 2009

डूबते तारो ने क्या-क्या रंग दिखलाये हमें
कुछ पुराने नक्श जो रह-रह के याद आए हमें

किस में जुर्रत है की उतरे पानियों की दरमिया
किस को ख्वाहिश है जो अब के रह पर लाये हमें

हम यह क्या जाने की क्यो सब्रो सको जाता रहा
तू जो इक दिन पास बैठे तो समझाए हमें

रात भर छ्त पर हमें तारे सदा देते रहे
रात भर कमरे में इक परछाई दहलाए हमें

ख्वाब में डूबे तो फ़िर पाया कुछ अपना सुराग
किस को फुर्सत है जो 'पाशी' ढूँढने आए हमें

कुमार पाशी

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होंठो पर सजा के अपने वो जो गुनगुना गई मुझको  

गुरुवार, 16 जुलाई 2009

होंठो पर सजा के अपने वो जो गुनगुना गई मुझको
इक लफ्ज़ था भुला हुआ ग़ज़ल बना गई मुझको

किस-किस तूफा के बीच से बचा लाया दिल को अपने
कितनी यकता वो निगाहे हुस्न, जोकि पा गई मुझको

किसी की याद, कोई खुशी कोई रंज--गम
यह किस मुकाम पर हयात ले कर गई मुझको

जामे मीना हो की रूखे अख्तर सबसे बचता था इससे पेश्तर
क्या कह दिया यार ने की नसीहत गई मुझको

जो लोग पूछते है मुझसे वजूहात दीवानगी की 'साहिर'
देखता हो की इक महजबी की अदा हाई मुझको

साहिर अम्बालवी

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अब आँखों में नही सैलाब कोई  

बुधवार, 15 जुलाई 2009

अब आँखों में नही सैलाब कोई
मुझे लौटा दे मेरे ख्वाब कोई

अजब मजबूरिया थी चुप रही मै
मुझे करता रहा आदाब कोई

मै तूफानों से बचना चाहती थी
मगर दरिया था पायाब कोई

नसीम निकहत

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बिखरे मोती  

सोमवार, 13 जुलाई 2009

कभी करीब कभी दूर हो के रोते है
मोहब्बतों के भी मौसम अजीब होते है

अजहर इनायती

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यही नही की सदाए लगा के देखते है  

यही नही की सदाए लगा के देखते है
कुए में कौन है पत्थर हटा के देखते है

गुलाम अब हवेली से आयेगे लेकिन
हुजुर अब भी ताली बजा के देखते है

अजाफा होता है कितना हमारी इज्ज़त में
रईस--शहर को घर पर बुला कर देखते है

अजहर इनायती

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फ़िर अजनबी फिजाओ से जोड़ा गया मुझे  

फ़िर अजनबी फिजाओ से जोड़ा गया मुझे
मै फूल थी जो शाख से तोडा गया मुझे

मिटटी के बर्तनों की तरह साडी जिंदगी
तोडा गया मुझे कभी जोड़ा गया मुझे

हाथो में सौप कर मेरे कागज़ की एक नाव
दरिया के तेज़ धार पर छोडा गया मुझे

खुशबू की तरह जीना भी आसान तो नही
फूलो से कतरा-कतरा निचोडा गया मुझे

मै ऐसी शाख थी जो लचकती थी कभी
फूलो का बोझ डाल कर मोडा गया मुझे

मुदत के बाद आँख लगी थी मगर 'नसीम'
ख्वाबो में सारी रात झिंझोडा गया मुझे

नसीम निकहत

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कही ऐसा न हो दामन जला लो  

कही ऐसा हो दामन जला लो
हमारे आसूओं पर खाक डालो

मानना भी ज़रूरी है तो फ़िर तुम
हमें सब से खफा हो के माना लो

बहुत रोई हुई लगती है ये आँखे
मेरी खातिर ज़रा काजल लगा लो

अकेलेपन से खौफ़ आता है मुझको
कहाँ हो मेरे ख्वाबो खयालो

बहुत मायूस बैठा हु मै तुमसे
कभी आकर मुझे हैरत में डालो

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चाँद है अफताब है यह लोग  

शनिवार, 11 जुलाई 2009

चाँद है अफताब है यह लोग
जिंदगी का निसाब है यह लोग

देख इनकी दराज जुल्फों को
रहमतों का सहाब है यह लोग

ऐसे चलते है जिस तरह चश्मे
जमजमे है, ख्वाब है यह लोग

लोग और इतने गुलबदन तौबा
क्या सराया गुलाब है यह लोग

लोग और वाकई हसी इतने
वाकिया है की ख्वाब है यह लोग

अदम

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ज़ख्मो को न आँचल से हवा दो  

शुक्रवार, 10 जुलाई 2009

ज़ख्मो को आँचल से हवा दो
गर कुछ दे सकते हो वफ़ा दो

गरीब के बीमार बच्चे को
रोटी दो की दवा दो

बेशर्म हो चली जिंदगी पर
रहम करो रहनुमाओ, हया दो

तानाशाही में कुचलते आदमी को
हा ! आम आदमी को जुबा दो

विद्रोह कर उठे जुलम के खिलाफ
उसे हिम्मत दो की सज़ा दो

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जो यह शर्ते-तालुक है की है हम को जुदा रहना  

गुरुवार, 9 जुलाई 2009

जो यह शर्ते-तालुक है की है हम को जुदा रहना
तो ख्वाबो में भी क्यो आओ, खयालो में भी क्या रहना

शज़र ज़ख्मी उम्मीदों की अभी तक लहलहाते है
इन्हे पतझड़ के मौसम में भी आता है हरा रहना

पुराने ख्वाब पलकों से झटक दो, सोचते क्या हो
मुकदर खुशक पतों का है शाखों से जुदा रहना

अजब क्या है अगर 'मखमूर' तुम पर यू रशे-गम है
हवाओ की तो आदत है चिरागों से खफा रहना

मखमूर सय्य्दी

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अबादतो की तरह मै यह काम करता हूँ  

अबादतो की तरह मै यह काम करता हूँ
मेरा उसूल है पहले सलाम करता हूँ

मखालफत से मेरी शख्सियत सवरती है
मै दुश्मनों का बड़ा एहेतराम करता हूँ

मै अपनी जेब में अपना पता नही रखता
सफर में सिर्फ़ यही एह्तमाम करता हूँ

मै डर गया हूँ बहुत सायादार पेडो से
ज़रा सी धुप बिछा कर कयाम करता हूँ

मुझे खुदा ने ग़ज़ल का दयार बख्शा है
यह सल्तनत मै मोहब्बत के नाम करता हूँ

डा. बशीर बदर

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