कत्ल करके लग रहे वो बेखबर से
लो हमी अब चल दिए है इस शहर से
सीख कर आए कहाँ से ढंग नया तुम
घर जलाते हो निगाहों के शरर से
आंधिया-दर-आंधिया, हरसू अँधेरा
बन गया माहोल कैसा इक ख़बर से
टुकड़े टुकड़े हो चली है जिन्दगानी
है परेशां आदमी अपने सफर से
लिख रहा है हर किसी का वो मुकद्दर
बच नही पाया कोई उसकी नज़र से
by Rahul kundra
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सारे माहौल को जाने क्या हो गया
जिंदा रहना भी अब तो सज़ा हो गया
एक मगरूर तारा बहुत दिन हुए
आसमानों से गिर कर फ़ना हो गया
अब किनारों के मिलने की उम्मीद क्या
दोनों जानब बड़ा फासला हो गया
रात भर खेमा-ऐ-दिल में हलचल रही
जाने बस्ती में क्या हादसा हो गया
सारी दुनिया में जब उसका कोई नही
वो मेरा हो गया तो क्या हो गया
ठोकरे खाते खाते हर इक गाम पर
अब तो 'महक' उसको होसला हो गया
यासमीन महक
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यासमीन महक
by Rahul kundra
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रहनुमा साथ छोड़ देता है
रास्ता साथ छोड़ता ही नही
नई तहजीब में पला बच्चा
अब खिलोनो से खेलता ही नही
सब की आखो में अश्क भर आए
इक मेरा दर्द बोलता ही नही
धुंधले चेहरों का उफ़ घना जंगल
बच निकलने का रास्ता ही नही
इखतलाफात दूर हो कैसे
वो मेरी तरह सोचता ही नही
यासमीन महक
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यासमीन महक
by Rahul kundra
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आपसे प्यार होता जाता है
कम दुश्वार होता जाता है
अक्ल करती है जितनी तदबीरे
इश्क बीमार होता जाता है
कोई लग्जिश न यार हो जाए
शौक आजार होता जाता है
जिस कदर हाल-ऐ-दिल छुपाते है
साफ इज़हार होता जाता है
ज़ख्म-ऐ-एहसास की खलिश से 'अदम'
फूल भी खर होता जाता है
अब्दूल हमीद 'अदम'
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अब्दूल हमीद 'अदम'
by Rahul kundra
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डूबते तारो ने क्या-क्या रंग दिखलाये हमें
कुछ पुराने नक्श जो रह-रह के याद आए हमें
किस में जुर्रत है की उतरे पानियों की दरमिया
किस को ख्वाहिश है जो अब के रह पर लाये हमें
हम यह क्या जाने की क्यो सब्रो सको जाता रहा
तू जो इक दिन पास आ बैठे तो समझाए हमें
रात भर छ्त पर हमें तारे सदा देते रहे
रात भर कमरे में इक परछाई दहलाए हमें
ख्वाब में डूबे तो फ़िर पाया न कुछ अपना सुराग
किस को फुर्सत है जो 'पाशी' ढूँढने आए हमें
कुमार पाशी
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कुमार पाशी
by Rahul kundra
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होंठो पर सजा के अपने वो जो गुनगुना गई मुझको
इक लफ्ज़ था भुला हुआ ग़ज़ल बना गई मुझको
किस-किस तूफा के बीच से बचा लाया न दिल को अपने
कितनी यकता वो निगाहे हुस्न, जोकि पा गई मुझको
न किसी की याद, कोई खुशी न कोई रंज-ओ-गम
यह किस मुकाम पर हयात ले कर आ गई मुझको
जामे मीना हो की रूखे अख्तर सबसे बचता था इससे पेश्तर
क्या कह दिया यार ने की नसीहत आ गई मुझको
जो लोग पूछते है मुझसे वजूहात दीवानगी की 'साहिर'
देखता हो की इक महजबी की अदा आ हाई मुझको
साहिर अम्बालवी
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साहिर अम्बालवी
by Rahul kundra
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अब आँखों में नही सैलाब कोई
मुझे लौटा दे मेरे ख्वाब कोई
अजब मजबूरिया थी चुप रही मै
मुझे करता रहा आदाब कोई
मै तूफानों से बचना चाहती थी
मगर दरिया न था पायाब कोई
नसीम निकहत
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नसीम निकहत
by Rahul kundra
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कभी करीब कभी दूर हो के रोते है
मोहब्बतों के भी मौसम अजीब होते है
अजहर इनायती
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अजहर इनायती
by Rahul kundra
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यही नही की सदाए लगा के देखते है
कुए में कौन है पत्थर हटा के देखते है
गुलाम अब न हवेली से आयेगे लेकिन
हुजुर अब भी ताली बजा के देखते है
अजाफा होता है कितना हमारी इज्ज़त में
रईस-ऐ-शहर को घर पर बुला कर देखते है
अजहर इनायती
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अजहर इनायती
by Rahul kundra
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फ़िर अजनबी फिजाओ से जोड़ा गया मुझे
मै फूल थी जो शाख से तोडा गया मुझे
मिटटी के बर्तनों की तरह साडी जिंदगी
तोडा गया मुझे कभी जोड़ा गया मुझे
हाथो में सौप कर मेरे कागज़ की एक नाव
दरिया के तेज़ धार पर छोडा गया मुझे
खुशबू की तरह जीना भी आसान तो नही
फूलो से कतरा-कतरा निचोडा गया मुझे
मै ऐसी शाख थी जो लचकती न थी कभी
फूलो का बोझ डाल कर मोडा गया मुझे
मुदत के बाद आँख लगी थी मगर 'नसीम'
ख्वाबो में सारी रात झिंझोडा गया मुझे
नसीम निकहत
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नसीम निकहत
by Rahul kundra
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कही ऐसा न हो दामन जला लो
हमारे आसूओं पर खाक डालो
मानना भी ज़रूरी है तो फ़िर तुम
हमें सब से खफा हो के माना लो
बहुत रोई हुई लगती है ये आँखे
मेरी खातिर ज़रा काजल लगा लो
अकेलेपन से खौफ़ आता है मुझको
कहाँ हो मेरे ख्वाबो खयालो
बहुत मायूस बैठा हु मै तुमसे
कभी आकर मुझे हैरत में डालो
by Rahul kundra
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चाँद है अफताब है यह लोग
जिंदगी का निसाब है यह लोग
देख इनकी दराज जुल्फों को
रहमतों का सहाब है यह लोग
ऐसे चलते है जिस तरह चश्मे
जमजमे है, ख्वाब है यह लोग
लोग और इतने गुलबदन तौबा
क्या सराया गुलाब है यह लोग
लोग और वाकई हसी इतने
वाकिया है की ख्वाब है यह लोग
अदम
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अदम
by Rahul kundra
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ज़ख्मो को न आँचल से हवा दो
गर कुछ दे सकते हो वफ़ा दो
गरीब के बीमार बच्चे को
रोटी दो न की दवा दो
बेशर्म हो चली जिंदगी पर
रहम करो रहनुमाओ, हया दो
तानाशाही में कुचलते आदमी को
हा ! आम आदमी को जुबा दो
विद्रोह कर उठे जुलम के खिलाफ
उसे हिम्मत दो न की सज़ा दो
by Rahul kundra
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जो यह शर्ते-तालुक है की है हम को जुदा रहना
तो ख्वाबो में भी क्यो आओ, खयालो में भी क्या रहना
शज़र ज़ख्मी उम्मीदों की अभी तक लहलहाते है
इन्हे पतझड़ के मौसम में भी आता है हरा रहना
पुराने ख्वाब पलकों से झटक दो, सोचते क्या हो
मुकदर खुशक पतों का है शाखों से जुदा रहना
अजब क्या है अगर 'मखमूर' तुम पर यू रशे-गम है
हवाओ की तो आदत है चिरागों से खफा रहना
मखमूर सय्य्दी
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मखमूर सय्य्दी
by Rahul kundra
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अबादतो की तरह मै यह काम करता हूँ
मेरा उसूल है पहले सलाम करता हूँ
मखालफत से मेरी शख्सियत सवरती है
मै दुश्मनों का बड़ा एहेतराम करता हूँ
मै अपनी जेब में अपना पता नही रखता
सफर में सिर्फ़ यही एह्तमाम करता हूँ
मै डर गया हूँ बहुत सायादार पेडो से
ज़रा सी धुप बिछा कर कयाम करता हूँ
मुझे खुदा ने ग़ज़ल का दयार बख्शा है
यह सल्तनत मै मोहब्बत के नाम करता हूँ
डा. बशीर बदर
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डा. बशीर बदर
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