कही ऐसा न हो दामन जला लो  

सोमवार, 13 जुलाई 2009

कही ऐसा हो दामन जला लो
हमारे आसूओं पर खाक डालो

मानना भी ज़रूरी है तो फ़िर तुम
हमें सब से खफा हो के माना लो

बहुत रोई हुई लगती है ये आँखे
मेरी खातिर ज़रा काजल लगा लो

अकेलेपन से खौफ़ आता है मुझको
कहाँ हो मेरे ख्वाबो खयालो

बहुत मायूस बैठा हु मै तुमसे
कभी आकर मुझे हैरत में डालो

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3 टिप्पणियाँ: to “ कही ऐसा न हो दामन जला लो

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