जो यह शर्ते-तालुक है की है हम को जुदा रहना
गुरुवार, 9 जुलाई 2009
जो यह शर्ते-तालुक है की है हम को जुदा रहना
तो ख्वाबो में भी क्यो आओ, खयालो में भी क्या रहना
शज़र ज़ख्मी उम्मीदों की अभी तक लहलहाते है
इन्हे पतझड़ के मौसम में भी आता है हरा रहना
पुराने ख्वाब पलकों से झटक दो, सोचते क्या हो
मुकदर खुशक पतों का है शाखों से जुदा रहना
अजब क्या है अगर 'मखमूर' तुम पर यू रशे-गम है
हवाओ की तो आदत है चिरागों से खफा रहना
मखमूर सय्य्दी
10 जुलाई 2009 को 12:39 am बजे
पुराने ख्वाब पलकों से झटक दो, सोचते क्या हो
मुकदर खुशक पतों का है शाखों से जुदा रहना
मखमूर साहेब का लाजवाब शेर है ये...बहुत शुक्रिया राहुल जी उनकी ग़ज़ल पढ़वाने के लिए...
नीरज
10 जुलाई 2009 को 1:39 am बजे
अतिसुन्दर .......शब्द नही है .