डूबते तारो ने क्या-क्या रंग दिखलाये हमें
शुक्रवार, 17 जुलाई 2009
डूबते तारो ने क्या-क्या रंग दिखलाये हमें
कुछ पुराने नक्श जो रह-रह के याद आए हमें
किस में जुर्रत है की उतरे पानियों की दरमिया
किस को ख्वाहिश है जो अब के रह पर लाये हमें
हम यह क्या जाने की क्यो सब्रो सको जाता रहा
तू जो इक दिन पास आ बैठे तो समझाए हमें
रात भर छ्त पर हमें तारे सदा देते रहे
रात भर कमरे में इक परछाई दहलाए हमें
ख्वाब में डूबे तो फ़िर पाया न कुछ अपना सुराग
किस को फुर्सत है जो 'पाशी' ढूँढने आए हमें
कुमार पाशी
17 जुलाई 2009 को 4:26 am बजे
बहुत बहुत सुन्दर रचना!!बधाई !!
17 जुलाई 2009 को 5:27 am बजे
सुन्दर है जिन्दगी का फल्सफा!!
17 जुलाई 2009 को 7:48 am बजे
मुझे ये बहुत पसंद आया
"किस में जुर्रत है की उतरे पानियों की दरमिया
किस को ख्वाहिश है जो अब के रह पर लाये हमें"
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति