अब आँखों में नही सैलाब कोई  

बुधवार, 15 जुलाई 2009

अब आँखों में नही सैलाब कोई
मुझे लौटा दे मेरे ख्वाब कोई

अजब मजबूरिया थी चुप रही मै
मुझे करता रहा आदाब कोई

मै तूफानों से बचना चाहती थी
मगर दरिया था पायाब कोई

नसीम निकहत

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