अब आँखों में नही सैलाब कोई
बुधवार, 15 जुलाई 2009
अब आँखों में नही सैलाब कोई
मुझे लौटा दे मेरे ख्वाब कोई
अजब मजबूरिया थी चुप रही मै
मुझे करता रहा आदाब कोई
मै तूफानों से बचना चाहती थी
मगर दरिया न था पायाब कोई
नसीम निकहत
आज तक जो कुछ भी देखा, सुना, पढ़ा, जाना, समझा वो सब कुछ जो यहाँ से वहां से जाने कहाँ कहाँ से जमा किया वो सब कुछ इस ब्लॉग पे डाल रहा हूँ. वैसे तो मेरी कोशिश होगी की हर रचना के साथ उसके रचनाकार का नाम भी दे दू लेकिन अगर कभी ऐसा न कर सको तो अपना दोस्त समझ के माफ़ कर दीजियेगा.
अब आँखों में नही सैलाब कोई
मुझे लौटा दे मेरे ख्वाब कोई
अजब मजबूरिया थी चुप रही मै
मुझे करता रहा आदाब कोई
मै तूफानों से बचना चाहती थी
मगर दरिया न था पायाब कोई
Posted in नसीम निकहत by Rahul kundra
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