कभी तो पतंग उडा के देख ख्वाब से आँख लड़ा के देख ख़ुद ठिकाने पहूचा आएगी हवा को ख़त पकड़ा के देख हँसेगी दो - चार मुलाकातों में जिंदगी को जरा चिढा के देख आइना देखता रह जाएगा पाव ज़रा लडखडा के देख घुल - मिल जाएगा हवाओ में परिंदे को ज़रा उडा के देख
अशोक प्लेटो
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अशोक प्लेटो
by Rahul kundra
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उसके दिल में जरूर कोई रहता है वरना कौन चुपचाप दर्द सहता है कही भीतर से रोता है ताजमहल लाख पूछो लेकिन कुछ नही कहता है घर लोटोगे तो गली कुचे पूछेंगे क्या यहाँ तुम्हारा कोई रहता है आग मरघट में लगे या दिल में दर्द का तूफान दोनों में उठता है यह ख़बर लाई थी नन्ही चिडिया तपते सेहरा में गुलाब खिलता है
अशोक प्लेटो
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अशोक प्लेटो
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हसरतो का हो गया है इस कदर दिल में हुजूम साँस रास्ता ढूंढती आने जाने के लिए साँस आए जिंदगी है न आए मौत है मौत और जिंदगी में कोई फासला नही खूने नाहक नही परवानो का देखा जाता हम चिरागों को सरेआम बुझा देते है मिट के भी अपने साथ रखता है नेक इन्सान , नेक सीरत को मसले जाने के बावजूद गुलाब तर्क करता नही निकहत को फूल कितना भी खूबसूरत हो उसमे निकहत नही तो कुछ नही लाख जौहर हो आदमी में अगर आदमियत नही तो कुछ भी नही हुआ मायूस जब इन्सान दुनिया के सहारो से उसे फ़िर गैब से कोई सहारा मिल ही जाता है हुज़ुमे कुफ्र ने जिस वक्त घेरा एहले ईमा को बचाने को कोई अल्लाह का प्यारा मिल ही जाता है सब हाल मेरा देख के बड जाते है आगे रुक कर जो सुन सके कोई भी ऐसा नही मिलता मिलते है मुझे जानने वाले तो हजारो लेकिन कोई पहचाने वाला नही मिलता
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बिखरे मोती
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लिख कर वरक - ऐ - दिल से मिटाने नही होते कुछ लफ्ज़ ऐसे है हो पुराने नही होते जब चाहे कोई फूक दे ख्वाबो के नशेमन आँखों के उजड़ने के ज़माने नही होते हो जाए जहां शाम , वही इनका बसेरा अवारा परिंदों के ठिकाने नही होते
मखमूर सय्य्दी
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मखमूर सय्य्दी
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कितनी दीवारे उठी है एक घर के दरम्यां घर कही गम हो गया है दिवार - ओ - दर के दरम्यां वार वो करते रहेगे ज़ख्म हम सहते रहेगे है यही रिश्ता पुराना संग ओ सर के दरम्यां
मखमूर सय्य्दी
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मखमूर सय्य्दी
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नए सफर का नया इंतजाम कह देंगे हवा को धुप , चिरागों को शाम कह देंगे किसी से हाथ भी चुप कर मिलाइए वरना इसे भी मौलवी साहब हराम कह देंगे
डा. राहत इंदौरी
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डा. राहत इंदौरी
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गुलाब , ख्वाब , दवा , ज़हर , जाम क्या - क्या है में आ गया हूँ बता इंतजाम क्या - क्या है फ़कीर , शाह , कलंदर , इमाम क्या - क्या है तुझे पता नही तेरा गुलाम क्या - क्या है
डा . राहत इंदौरी
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डा. राहत इंदौरी
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रात की धड़कन जब तक जारी रहती है सोते नही हम जिम्मेदारी रहती है कुछ शायर दिन रात नवाजे जाते है कुछ गजलो की धुन सरकारी रहती है
डा . राहत इंदौरी
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डा. राहत इंदौरी
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सिर्फ़ खंजर ही नही आँखों में पानी चहिये ऐ खुदा दुश्मन भी मुझको खानदानी चहिये में तेरी आवारगी को कुछ नही कहता मगर यार बादल मेरे खेतो को भी पानी चहिये
डा . राहत इंदौरी
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डा. राहत इंदौरी
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तूफ़ान तो इस शहर में अक्सर आता है देखे अब के किस का नम्बर आता है यारो के भी दांत बहुत ज़हरीले है हमको भी सापों का मंतर आता है बच कर रहना एक कातल इस बस्ती में कागज़ की पोशाक पहन कर आता है सुख चूका हूँ फिर भी मेरे साहिल पर पानी पीने रोज़ समंदर आता है
डा . राहत इंदौरी
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डा. राहत इंदौरी
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इतने करीब आके सदा दे गया मुझे में बुझ रही थी कोई हवा दे गया मुझे जीने का इक मिजाज़ नया दे गया मुझे माँगा था मैंने ज़हर दवा दे गया मुझे
अंजुम रहबर
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अंजुम रहबर
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हाथ यू हाथ में नही मिलता मुफ्त सौगात में नही मिलता प्यार मिलता है प्यार से ' अंजुम ' प्यार खैरात में नही मिलता
अंजुम रहबर
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अंजुम रहबर
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शाम जब भी परिंदे चहकने लगे मेरी पलकों पे जुगनू चमकने लगे उसके आने की बस एक ख़बर आई थी और कलाई के कंगन खनकने लगे जरफ है लाज़मी आदमी के लिए तुमने पी भी नही और बहकने लगे
अंजुम रहबर
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अंजुम रहबर
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ख़ुद को सवारूगी घर को सजा लूंगी आएगा वो जिस दिन ईद माना लूंगी मुझ से छुपा कर तू लाख रखे ख़ुद को तुझको किसी दिन में तुझसे चुरा लूंगी दूरिया यादो की रंगीन पतगे है तू भी उडा लेना में भी उडा लूंगी नींदे तो मेरी है ख्वाब तो तेरे है जब भी में चाहूगी तुझ को बुला लूगी
अंजूम रहबर
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अंजूम रहबर
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अबादतो की तरह में यह काम करता हूँ मेरा उसूल है पहले सलाम करता हूँ मखालफत से मेरी शक्सियत सवरती है में दुश्मनों का बड़ा एहतराम करता हूँ में अपनी जेब में अपना पता नही रखता सफर में सिर्फ़ यही एहतमाम करता हूँ में डर गया हूँ बहुत सायादार पेडो से ज़रा सी धुप बिछा कर कयाम करता हूँ मुझे खुदा ने ग़ज़ल का दयार बख्शा है यह सल्तनत में मोह्हबत के नाम करता हूँ
डा . बशीर बदर
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डा. बशीर बदर
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अगर तलाश करू कोई मिल ही जाएगा मगर तुम्हारी तरह कौन मुझको चाहेगा तुम्हे जरूर कोई चाहतो से देखेगा मगर वो आँखे हमारी कहाँ से लायेगा न जाने कब मेरे दिल पर नई सी दस्तक हो मकान खली हुआ है तो कोई आएगा
डा. बशीर बदर
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डा. बशीर बदर
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लोग बहरे है इन्हे दिल की सुनाया न करो बंद दरवाजों पे आवाज़ लगाया न करो पत्थरो से कहाँ मिलती है मुरादे दिल की तुम मजारो पे चिरागों को जलाया न करो वक्त की आंधी उडाकर न कही ले जाए रेत पर तुम मेरी तस्वीर बनाया न करो उमर भर कौन रहा साथ किसी के ऐ ' अश्क ' तुम मेरी याद में अब अश्क बहाया न करो
अश्क अम्बालवी
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अश्क अम्बालवी
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तीरगी जैसे जरूरी , रौशनी के वास्ते दर्द भी बेहद जरूरी है , खुशी के वास्ते अहमियत ही हो न जाए जिंदगी की कम कही मौत भी बेहद जरूरी , हर किसी के वास्ते लोग नंगे पाव भी ले सिख चलना इसलिए छाव भी बेहद जरूरी , जिंदगी के वास्ते वास्तव में है वही शायर , जो दिल से लिख रहा पीर भी बेहद जरूरी , शायरी के वास्ते खो कही पहचान ही न जाए उसकी दोस्तों नीर भी बेहद जरूरी , उस नदी के वास्ते उब जाएगा अकेला हलचलों के दौर में आदमी बेहद जरूरी , आदमी के वास्ते
घमंडी लाल अग्रवाल
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घमंडी लाल अग्रवाल
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इधर उधर कई मंजिल है , चल सको तो चलो बने - बनाये है सांचे , जो ढल सको तो चलो यहाँ किसी को कोई रास्ता नही देता मुझे गिरा के अगर तुम संभल सको तो चलो हरेक सफर को है महफूज रास्तो की तलाश हिफाज़तो की रिवायत बदल सको तो चलो कही नही कोई सूरज , धुआ धुआ है फिजा ख़ुद आपने आप से बाहर निकल सको तो चलो
निदा फाजली
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निदा फाजली
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साफ़ गोई से क्या लिया हमने सबको दुश्मन बना लिया हमने गैर नीचा ख़ुद - ब - ख़ुद हो जाएगा ख़ुद को पहले उससे ऊँचा कीजिये कब वो रुकते है किसी मंजिल पर जिनको चलने में मज़ा आता है दर्द की जब कोई दवा ही नही क्यो न फ़िर दर्द को दवा कहिये पेड़ को काट कर तू पछतायेगा फूल - फल क्या , शाख से भी जाएगा
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बिखरे मोती
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मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क तुम्हे हो जाएगा दीवारों से टकराओगे जब इश्क तुम्हे हो जाएगा हर बात गवारा कर लोगे मन्नत भी उतरा कर लोगे ताबीज भी बन्ध वाओगे जब इश्क तुम्हे हो जाएगा तन्हाई के झूले झूओलोगे हर बात पुरानी भूलोगे आइने से घबराओ गे जब इश्क तुम्हे हो जाएगा जब सूरज भी खो जाएगा और चाँद कही सो जाएगा तुम भी घर देर से आओगे जब इश्क तुम्हे हो जाएगा बेचनी जब बड जायेगी और याद किसी की आएगी तुम मेरी गजले गाओ गे जब इश्क तुम्हे हो जाएगा ग़ज़ल के बादशाह जगजीत सिंह जी की ये ग़ज़ल जिस में उनका साथ उनकी पत्नी चित्र सिंह जी दिया है इसको सुनिए और लुत्फ़ लीजिये।
by Rahul kundra
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