आदमी आदमी को क्या देगा जो भी देगा इसे खुदा देगा जितना देगा तू उसके बन्दों को वो तुम्हे उससे भी सवा देगा जब दुआ में तेरी असर ही नही बद्दुआ तू किसी को क्या देगा दाग कितने है तेरे चेहरे पर आइना देख सब दिखा देगा छोड़ कर मुझको इतना खुश न हो उमर भर दुःख ये हादिसा देगा जिंदगी दी है जिसने 'अश्क ' मुझे जीने का भी वो हौसला देगा
अश्क अम्बालवी
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अश्क अम्बालवी
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बाहर से यारी भीतर मनमुटाव है यहाँ के चलन का अजब रख -रखाव है छोड़ जाए महफिल तो भूल जाते है लोग अपनों का अपनों पर ऐसा ही घाव है अनेको तूफान तो सतह पर खामोश है समंदर में लगता बहुत गहरा तनाव है तन्हा हुए इश्क में दुनिया से बेखबर ठोकरे खाई बेशुमार फ़िर भी झुकाव है जितना भी सहा जाए उतना ही मज़ा आए ऐसे मेरे कातिल का मुझ पर कसाव है सांसो की आंच पकती ही जाती है बेखबर सीने में जैसे मेरे कोई जलता अलाव है
भोला वाघमरे
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ये आलम शौक का देखा न जाए वो बुत है या खुदा देखा न जाए ये मेरे साथ कैसी रौशनी है के मुझसे रास्ता देखा न जाए ये किन नजरो से तुने आज देखा की तेरा देखना देखा न जाए हमेशा के लिए मुझसे बिछ्डा जा ये मंज़र बारहा देखा न जाए ग़लत है जो सुना , पर आजमा कर तुझे ऐ बेवफा देखा न जाए ये महरूमी वही पासे -वफ़ा है कोई तेरे सिवा देखा न जाए यही तो आशना बनते है आख़िर कोई न आशना देखा न जाए फ़राज़ अपने सिवा कौन है तेरा तुझे तुझ से जुदा देखा न जाए
अहमद फ़राज़
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अहमद फ़राज़
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मायूस हो तेरी महफिल से कोई फ़िर गया रात के आँचल से एक सितारा झर गया एक लम्हे के लिए उमर भर बैठा रहा और फ़िर वो शख्स न जाने किधर गया तमाम रास्ते दौड़ता अकेला कम्बखत दरिया पहाड़ छोड़ सीधा समंदर गया चोगान में आग बुझाये बैठा है काफिला रास्ता जिसका सेहरा की रेत से भर गया ' प्लेटो ' पूछता रहा उससे पता अपना बुलबुल बोली ' जिप्सी भी कभी घर गया '
अशोक प्लेटो
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अशोक प्लेटो
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बाहर से मुझे नफरत थी , पर दिल में मेरे बसता था वो पागल - सा इक लड़का , जो देख के मुझको हसता था क्यो ठुकराया मांग को उसकी , सोच के अब पछताती हूँ दिल के बदले दिल माँगा था , सोदा कितना सस्ता था किस्से पूछू कैसे पूछू , क्यों नही देता अब वो दिखाई रोज़ गुजरता था वो इधर से , उसका ये ही रस्ता था तुमने छोड़ा मुझको मैंने शहर तुम्हारा छोड़ दिया घूरती थी हर शक्स की नज़रे , हर कोई मुझ पर हसता था दर्द छुपाकर जीना उसकी , 'अश्क ' पुरानी आदत थी भीतर -भीतर रोता था वो , बाहर -बाहर हसता था
अश्क अम्बालवी
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अश्क अम्बालवी
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जिंदा लबो पे ये ताले कैसे ये जलसा गुंगो के हवाले कैसे चोटी तक पहुचा ज़हर तो एहसास हुआ ये साँप आस्तीन में हमने पाले कैसे घर से नही निकले जो लोग अभी तलक ताज्जुब है उनके पैरो में छाले कैसे जूते और टोपी में ताल्लुक ठीक नही कोई शख्स इरादों को संभाले कैसे सिक्के के दोनों पहलू एक ही जैसे है हवाओ में इसको कोई उछाले कैसे सुना है फुटपाथ पे खुदा सोता है इस सहर में मस्जिद ये शिवाले कैसे
सनम दहिया
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सनम दहिया
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आँखों में जिसके खौफ का साया बना रहा वो शख्स इसके बाद भी अपना बना रहा अपने तमाम रिश्ते ही छुटे हुए लगे मेरा वजूद मुझसे ही तन्हा बना रहा अब उसके इन्तिखाब का होता कहाँ यकी दिल में था , जिसके ख्वाब का चेहरा बना रहा शामिल रही सफर में भी अपनी उदासिया चाहत के नंगे पाव का सहारा बना रहा खुरेजियो के दौर से गुजरा किए मगर फ़िर भी चमन में अमन का दवा बना रहा
अनिरुद्ध सिन्हा
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अनिरुद्ध सिन्हा
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दर्द की स्याही से लिखा ये मेरा नसीब था बिक गई मेरी मोहब्बत में गरीब था पल भर को तो हम भी न संभल पाए थे गुजरा ही वो हादसा हम पर अजीब था तमाम उमर जिंदगी समझ जिसे चाहा वो आखिरी सफर में भी न मेरे करीब था खुशिया बाट्ता रहा में सबसे जिंदगी की अब गम के अंधेरो में न की शरीक था दिल , दुनिया , देवता , सब पत्थर के है सुना है हमने कहता एक फ़कीर था
कुनाल महाजन
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अपने -आपको सताया न करो दिल किसी से लगाया न करो मोहब्बत करो शौक से करो फ़िर बाद में पछताया न करो फूक डाले जो अपना ही घर ऐसे चिरागों को जलाया न करो बहने दो आँखों से आसू दर्द सिने में छुपाया न करो किसी की जान भी जा सकती है सबके सामने मुस्कराया न करो दिल देने का गर हौसला रखते हो जान देने से घबराया न करो तुम भी पागल हो जाओगे ' आमीन 'दिल -ऐ -नादान को समझाया न करो
मौ . आमीन खाकी
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शब -ऐ -गम से जो हो खौफ अगर इक शमा -ऐ -उम्मीद जलाया कीजिये यू तन्हाइयो से न कभी घबराइए किसी गैर को अपना बनाया कीजिये न कीजिये गिला औरो की बेवफाई का आप अपना वायदा निभाया कीजिये तय कीजिये गैरो की खुशी खातिर अपनी हसी में गम को छुपाया कीजिये चाहे कभी जो कोई दोस्त बनना मुस्करा के पहला कदम बढाया कीजिये ख़ुद हसिये , औरो को हसाइए यू दिलो की विरानिया मिटाया कीजिये
रोहित ऋषि
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मुझसे वही हालात पुराने मांगे जिंदगी जीने के बहाने मांगे अपनी शाम का एक लम्हा तो दे हमने कब तुझसे ज़माने मांगे अजीब शौक है ज़माना यारो हम फकीरों से ठिकाने मांगे में गर्दिश में गुनगुना क्या दिया वो खुशियों के तराने मांगे में ख़ुद एक कहानी हूँ या रब और वो मुझसे फ़साने मांगे
चरणजीत
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चरणजीत
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अगर आप हमको मिल गए होते बाग़ में फूल खिल गए होते आपने यू ही घूर कर देखा होंठ तो यू भी सिल गए होते काश हम आप इस तरह मिलते जैसे दो वक्त मिल गए होते हमको अहद- ऐ -खिरद मिले ही नही वरना कुछ मुन फईल मिल गए होते उनकी आँखे ही कज लगर थी ' अदम ' दिल के परदे तो हिल गए होते
अदम
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दुनिया समझ रही थी शनासाइयों में था लेकिन वो मेरी रूह की गहराइयों में था कहता था मेरा साथ निभाएगा उमर भर यह राज़ अब खुला की वो हरजाइयो में था चेहरे बदल -बदल के वो देता रहा फरेब जो गुम मेरे ख्याल की परछाइयो में था वो कातिलो का जश्न था कब थी मेरी बारात मातम किसी की मौत का शह्ननाइयो में था ' शाहीन ' उसको रेत में छोड़ आई थी मगर लगता था वो माकन की अगंनाईयो में था
रेहाना शाहीन
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आँखों में रात ख्वाब का खंज़र उतर गया यानि सहर से पहले चिरागे सहर गया इस फ़िक्र ही में अपनी तो गुजरी तमाम उमर में उसको था पसंद तो क्यो छोड़ कर गया आंसू मेरे तो मेरे ही दामन में आए थे आकाश कैसे इतने सितारों से भर गया कोई दुआ कभी तो हमारी कबूल कर वरना कहेगे लोग , दुआ से असर गया
शीन काफ निजाम
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मोहब्बत में या रब यह कैसा मज़ा है नशा ही , नशा ही , नशा ही , नशा है यह आशिक की तक़दीर किसने है लिखी गिला ही , गिला ही , गिला ही , गिला है गुनाहों का तेरे खुदा को तो बंदे पता ही , पता ही , पता ही , पता है जन्नत से जब से निकला है आदम सज़ा ही , सज़ा ही , सज़ा ही , सज़ा है निजाम -ऐ -दहर पे नज़र तो डालो खुदा ही , खुदा ही , खुदा ही , खुदा है
अजित दियोल
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ऊपर क्या , नीचे भी देखा करिए साहिब अपनी परछाई से कभी न डरिए साहिब पुरी उमर आदमी बनना हमने सिखा अर्थ देवता का हमसे मत कहिये साहिब वो जो हाथ जोड़ कर रोज़ मिला करते है उनके हाथो में तलवार न रखिए साहिब सरिता के तट पर तो चल कर सबने देखा सरिता की लहरों पर भी कुछ चलिए साहिब रोने से कुछ बात नही बनती दुनिया में हासिए साहिब . हासिए साहिब, हासिए साहिब,
घमंडीलाल अग्रवाल
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बनती -बिगड़ती डगर क्युं है मेरे ख्वाबो में तेरा घर क्युं है यू तो शहर खंडहर निकला कब्रिस्तान संगमरमर क्युं है आपके हाथो में तो गुलेल भी नही पंछी का मगर गिरा पर क्युं है सफर तो तय कर लिया लेकिन कश्ती को साहिल से डर क्युं है ' प्लेटो ' के लिए खुल गए किवाड़ मेरे लिए बंद तेरा डर क्युं है
( अशोक प्लेटो )
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कातिल से अपनी जान का सौदा करेगे हम मकतल में फ़िर लहू से उजाला करेंगे हम शीशे में अपने आप को देखा करेगे हम फ़िर दुसरो पे तंज उछाला करेगे हम यादो की कहकशा से पुकारोगे जब हमे ख्वाबो के रथ पर बैठ के आया करेगे हम
( रेहाना शाहीन )
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करीब इतना ही रखो की दिल बहल जाए अब इस कदर भी न चाहो की दम निकल जाए
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बिखरे मोती
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माजी की हर इक चोट उभर आई है यह दर्द मेरी जान का तमन्नाई है आ जाओ किसी तरह कि ता -हदे नज़र तन्हाई है , तनहाई है , तनहाई है
(शीन काफ निजाम)
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तेरी खुशबू से मेरी दुनिया का महकना अच्छा था तेरे वजूद में मेरी दुनिया का सिमटना अच्छा था लौट आओ चारासाज़ लेकर अपनी तमाम राहते तेरी याद में इस दिल का तड़पना अच्छा था जिंदगी की उलझने निहायत बेमजा हो चली है जहान में सिर्फ़ तेरी जुल्फ का उलझना अच्छा था इंसानों की भीड़ में हर चहेरा अजनबी है ख्वाबो में तेरे साये से लिपटना अच्छा था दिल बार -बार कह रहा है ये कैसी मंजिल है इससे तो तेरी आरजू में भटकना अच्छा था
दुष्यंत
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दुष्यंत
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हर तरफ़ आह आह है जैसे ये जहां कत्लगाह है जैसे अब सदाकत गुनाह है जैसे झूठ से ही निबाह है जैसे इश्क की इब्तिदा में ऐसा लगा सीधी -सादी सी राह है जैसे हर किसी ने किया यहाँ सिजदा आरजू खानकाह है जैसे खौफ से हम सिमट गए इतना कोई फरदे -तबाह है जैसे पेश आता है यू अदावत से वो मुखालिफ गवाह है जैसे
प्रवीण नाकाम
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आँखों आँखों में बात हुई जाती है आज उनसे मुलाकात हुई जाती है उठती -गिरती ये पलक , बेकल वो नज़र हाय मोहब्बत भरा पैगाम लती है यूं तो हर गुल है मोहब्बत के काबिल इस गुल से ही क्यो मात हुई जाती है लाख छुपाना चाहा जज़्बात को लेकिन बात छुपती नही खुलती चली जाती है है अजीबो -गरीब मंज़र ये मोहब्बत का इक मुसलमा से बुतपरस्ती हुई जाती है अलविदा तुमसे है इस वादे के साथ आज जिंदगी तुम्हारी हुई जाती है
विष्णु सक्सेना
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बुत परस्ती सिखा गया मुझको दर्द पत्थर बना गया मुझको जिंदगी मौत के हिंडोले पर आज फ़िर प्यार आ गया मुझको नींद उचटी तो ख्वाब टूटेगे थपकियों में बता गया मुझको साज़ की कब्र में दफ़न सरगम कौन चुपचाप गा गया मुझको में नदी की तरह उछलता था इक समंदर निगल गया मुझको भीड़ के भी उसूल होते है शोर में भी सुना गया मुझको
सत्य प्रकाश उप्पल
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वो सोच वो जज़्बात कहाँ से लाऊ गुम गुजश्ता करामात कहाँ से लाऊ ऐ रात के बड़ते हुए तीर सायो गुजरे हुए लम्हात कहाँ से लाऊ
(शीन काफ निजाम )
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खामोश -ऐ -दिल भरी महफिल में चिल्लाना नही अच्छा अदब पहला करीना है मोहब्बत के करीनो में
( अल्लामा इक़बाल )
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कोई दोस्त है न रकीब है तेरा शहर कितना अजीब है कोई दोस्त है .........................वो जो इश्क था वो जूनून था ये जो हिजर है ये नसीब है कोई दोस्त है .........................यहाँ किसका चेहरा पड़ा करू यहाँ कौन इतना करीब है कोई दोस्त है......................... यहाँ किस से कहू मेरे साथ चल यहाँ सब के सर पे सलीब है कोई दोस्त है......................... तुझे देख कर में हूँ सोचता तू हबीब है या रकीब है कोई दोस्त है.........................कोई दोस्त है......................... तेरा शहर कितना.................... कोई दोस्त है.........................
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तमाम रिश्तो से इंकार करना चाहते है हम अपनी जात को दिवार करना चाहते है हमारी जिंदगी जीना कोई मजाक न था सो हम तुम्हे भी ख़बरदार करना चाहते है अजीज़ मिलने लगे है बड़े खलूस के साथ ये लोग कोई नया वार करना चाहते है
नसीम निकहत
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मेरी आँखों में कोई ख्वाब नही मेरे हाथो में कोई गुलाब नही इस सेहरा में कौन रहता है चाँद के पास कोई जवाब नही उसने पीछे मुड कर भी नही देखा मैंने तो माँगा कोई हिसाब नही ये खामोशी मुझसे टूटती नही मेरे हाथो में कोई रकाब नही दरिया अपने में ही डूब गया कैसे कह दू कोई सैलाब नही
अशोक प्लेटो
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