ग़ज़ल  

बुधवार, 14 जनवरी 2009

आदमी जब से छल हो गया
साँस लेना गरल हो गया
सत्य की नींव भी उठी
झूठ ऊँचा महल हो गया
अर्थ का स्वार्थमय अर्थ ही
हर समस्या का हल हो गया
दिन उगता हुआ सूर्य भी
अब निशा की नक़ल हो गया
गीत जो लिखा प्यार का
वो सुबकती ग़ज़ल हो गया
कहिये सच और मर जाइये
मरना कितना सरल हो गया

" सत्यपाल स्नेही "

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