ग़ज़ल
बुधवार, 14 जनवरी 2009
आदमी जब से छल हो गया
साँस लेना गरल हो गया
सत्य की नींव भी न उठी
झूठ ऊँचा महल हो गया
अर्थ का स्वार्थमय अर्थ ही
हर समस्या का हल हो गया
दिन उगता हुआ सूर्य भी
अब निशा की नक़ल हो गया
गीत जो लिखा प्यार का
वो सुबकती ग़ज़ल हो गया
कहिये सच और मर जाइये
मरना कितना सरल हो गया
" सत्यपाल स्नेही "
14 जनवरी 2009 को 7:33 am बजे
हिन्दी चिठ्ठा विश्व में आपका हार्दिक स्वागत है, खूब लिखें, लगातार लिखें, शुभकामनायें… सिर्फ़ एक अर्ज है कि कृपया वर्ड वेरिफ़िकेशन हटा दें ताकि टिप्पणी में कोई बाधा न हो और इस सुविधा की कोई जरूरत भी नहीं है… धन्यवाद
14 जनवरी 2009 को 10:11 am बजे
बहुत सुंदर...आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है.....आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे .....हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
14 जनवरी 2009 को 10:39 am बजे
बहुत अच्छी हिन्दी ग़ज़ल लिखी है आपने भाई.....मज़ा आ गया...!!
14 जनवरी 2009 को 9:29 pm बजे
आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है
15 जनवरी 2009 को 2:15 am बजे
दिन उगता हुआ सूर्य भी
अब निशा की नक़ल हो गया
Kya baat hai! Swagat.
(gandhivichar.blogspot.com)