ग़ज़ल  

मंगलवार, 13 जनवरी 2009

हर किसी के हाथ में बिक जाने को तैयार नही
ये मेरा दिल है तेरे शहर का बाज़ार नही
फूल कदमो टेल आता है तो रुक जाता हूँ
तेरे जैसी ज़माने मेरी रफ्तार नही
ये मेरा दिल है तेरे शहर का बाज़ार नही
हर किसी के हाथ में बिक जाने को तैयार नही
चूम कर पलकों से तन्हाई में जाकर पड़ ले
तेरे दीवाने का ख़त है कोई अख़बार नही
ये मेरा दिल है तेरे शहर का बाज़ार नही
हर किसी के हाथ में बिक जाने को तैयार नही
तेरी जुल्फों में सजे जिसका न गजरा कोई
मेरी नजरो में बियाबान है गुलज़ार नही
ये मेरा दिल है तेरे शहर का बाज़ार नही
हर किसी के हाथ में बिक जाने को तैयार नही

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1 टिप्पणियाँ: to “ ग़ज़ल

  • कंचन सिंह चौहान
    13 जनवरी 2009 को 2:23 am बजे  

    फूल कदमो टेल आता है तो रुक जाता हूँ
    तेरे जैसी ऐ ज़माने मेरी रफ्तार नही

    चूम कर पलकों से तन्हाई में जाकर पड़ ले
    तेरे दीवाने का ख़त है कोई अख़बार नही

    वाह भाई क्या बात है...!

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