शुक्रवार, 16 जनवरी 2009
मेरा अपना तजुर्बा है इसे सबको बता देना
हिदायत से तो अच्छा है किसी को मशवरा देना
अभी हम है हमारे बाद भी होंगी हमारी बात
कभी मुमकिन नही होता किसी को भी मिटा देना
नई दुनिया बनानी है नई दुनिया बसायेगे
सितम की उमर छोटी है जरा उनको बता देना
अगर कुछ भी जले अपना बड़ी तकलीफ होती है
बहुत असान होता है किसी का घर जला देना
मेरी हर बात पर कुछ देर तो वो चुप ही रहता है
मुझे मुश्किल में रखता है फ़िर उसका मुस्करा देना
' तुषार ' अच्छा है अपनी बात को हम ख़ुद ही निपटा ले
ज़माने की आदत है सिर्फ़ शोलो को हवा देना
16 जनवरी 2009 को 1:33 am बजे
BAHOT BADHIYA LIKHA HAI AAPNE ...DHERO BADHAI AAPKO...
ARSH
16 जनवरी 2009 को 5:28 am बजे
बहुत सुंदर कहा।
16 जनवरी 2009 को 5:41 am बजे
बहुत बढ़िया लगी तुषार जी की रचना.