ग़ज़ल
मंगलवार, 13 जनवरी 2009
उमर भर करती रही यूं मसखरी सी जिंदगी
जिस तरफ़ देखा, दिखाइ दी डरी सी जिंदगी
काश ! हो जाती मयसर चाँद सांसे ठीक सी
हम भी कह देते की होती है परी सी जिंदगी
हर लम्हा, हर शेर में लिख लिख इसे गया मगर
हो नही पाई कभी भी शायरी सी जिंदगी
नाम लेने से बहारो का, महक सकती नही
फूल की मानिंद पतझर में झरी सी जिंदगी
क्या कहे ख़ुद को की सोने की चिरैया को जला
रख में ढूँढा किए हम सुनहरी-सी जिंदगी
इक हथेली जब किसी तलवार सी उठे तो फ़िर
क्या जिए दूजी हथेली पर धरी सी जिंदगी
14 जनवरी 2009 को 2:30 am बजे
Ish yarthah gazal ke liye 'SATYAPAL SNEHI Ji'ko mera abhiwadan aur apko dhanyabad ish behtarin post ke liye.
14 जनवरी 2009 को 3:34 am बजे
काश ! हो जाती मय्यसर चंद सांसे ठीक सी
हम भी कह देते की होती है परी सी जिंदगी
बेहतरीन शेर है और पूरी ग़ज़ल लाजवाब है...थोड़ा टाइपिंग की गलतियाँ सुधार लें तो खूबसूरती और बढ़ जाए..साथ ही हर शेर के बाद स्पेस दें तो भी अच्छा लगेगा...बात बुरी लगी हो क्षमा.
नीरज
15 जनवरी 2009 को 3:07 am बजे
Bahut sundar bhaavpoorn rachna hai. aabhaar.