तेरे खुशबू में बसे ख़त मै जलाता कैसे  

गुरुवार, 29 जनवरी 2009

तेरे खुशबू में बसे ख़त मै जलाता कैसे
प्यार में डुबे हुए ख़त मै जलाता कैसे
तेरे हाथो के लिखे ख़त में जलाता कैसे
जिनको दुनिया की निगाहों से छुपाये रखा
जिनको इक उमर कलेजे से लगाये रखा
दीन जिनको, जिन्हें इमान बनाये रखा
तेरे खुशबू में बसे ख़त मै जलाता कैसे
जिनका हर लफ्ज़ मुझे याद था पानी की तरह
याद थे मुझको जो पैगाम--ज़ुबानी की तरह
मुझको प्यारे थे जो अनमोल नीशनी की तरह
तेरे खुशबू में बसे ख़त मै जलाता कैसे
तुने दुनिया की निगाहों से जो बच कर लिखे
सलहा-साल मेरे नाम नाम बराबर लिखे
कभी दिन में तो कभी रात को उठ कर लिखे
तेरे खुशबू में बसे ख़त मै जलाता कैसे
प्यार में डुबे हुए ख़त मै जलाता कैसे
तेरे हाथो के लिखे ख़त में जलाता कैसे
तेरे ख़त आज में गंगा में बहा आया हूँ
आग बहते हुए पानी में लगा आया हूँ

में इस ग़ज़ल के बारे में खुक कहना चाहता हूँ लेकिन मेरे
पास अल्फाज़ की कमी है क्योकि इस ग़ज़ल की खूबसूरती
बोल के बया नही की जा सकती आप ख़ुद ही इस का लुत्फ़
लीजिये।

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6 टिप्पणियाँ: to “ तेरे खुशबू में बसे ख़त मै जलाता कैसे

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