ग़ज़ल
मंगलवार, 13 जनवरी 2009
अभी तो बाज़ की असली उड़ान बाकि है
कुछ परिंदों का अभी इम्तिहान बाकि है
अभी तो उसने फकत पर्वतो को लाघा है
अभी तो सामने इक आसमान बाकि है
सज़ा-ऐ-मौत का ही फ़ैसला सुना देना
मगर अभी तो मेरे भी बयां बाकि है
उमर भर यूं तो कभी मैंने कुछ किया है नही
पिछले जन्मो की मगर कुछ थकान बाकि है
अभी तो जिक्र फकत दुश्मनों का आया है
अभी तो दोस्तों की दास्ताँ बाकि है
काट बरगद को सरेआम कुल्हाडी बोली
है कोई पेड़ वो जिसकी जुबान बाकि है
मार कर मुझको खड़े दूर हो गए कातिल
उनको शक है की अभी मुझमे जान बाकि है
14 जनवरी 2009 को 3:09 am बजे
BEHAD KHUBSOORAT HAI.
14 जनवरी 2009 को 4:01 am बजे
अभी तो दोस्तों की दास्ताँ बाकी है
मार कर मुझको खड़े दूर हो गए कातिल
उनको शक है की अभी मुझमे जान बाकी है
वाह...क्या बात है जनाब...बेहतरीन...आपके पास बहुत अच्छे भाव हैं...ग़ज़ल लेखन की बारीकियां भी मालूम हैं...सिर्फ़ लफ्ज़ ठीक से नहीं लिखे गए हैं बाकी में बड़ी ई की मात्र है छोटी की नहीं...ये बात अखरती है...बात बुरी लगी हो तो क्षमा...
नीरज
14 जनवरी 2009 को 4:52 am बजे
उमर भर यूं तो कभी मैंने कुछ किया है नही
पिछले जन्मो की मगर कुछ थकान बाकि है
-वाह!! एक बार फिर सुरेन्द्र जी वाह!!
आभार इस प्रस्तुति का.