ग़ज़ल  

रविवार, 18 जनवरी 2009

देने पर गम जो आए, तो इतना दिया मुझे
एक कतरा चाहिए था पर दरिया दिया मुझे

दिल लेके इश्क में मेरा धोखा दिया मुझको
अफ़सोस तुमने क्या लिया पर क्या दिया मुझे

ये दर्द, ये सितम जो लिखे थे मेरे नसीब में
फ़िर पत्थर का दिल क्यो नही दे दिया मुझे

तेरी नही थी जब याद, शब्--गम तो कौन था
किसने तमाम रात फ़िर दिलासा दिया मुझे

अब तो किसी से कोई शिकवा नही ' कैलाश ' को
सच पूछिए तो दिल ने ही दगा दिया मुझे

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