ग़ज़ल  

रविवार, 18 जनवरी 2009

कब्र तक हमने सब का साथ निभाया
जब परखा तो ख़ुद को अकेला पाया

हर कोई था मगन अपनी ही धुन में
सुना किसी ने जब हमने बुलाया

कहने को थे वो सभी हमारे अपने
वक्त पड़ा कोई भी काम आया

हर इन्सान है मतलबी इस जहां में
हर किसी को हमने है आजमाया

मेरे हर ज़ख्म पर हसती रही दुनिया
हर गम को उसने हसी में उडाया

मिल पाई कभी छ्त और जमी
हम है वही जिसने सब कुछ लुटाया

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4 टिप्पणियाँ: to “ ग़ज़ल

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