तुम किसी ख्वाब को आँखों में सजा कर देखो
शुक्रवार, 30 जनवरी 2009
तुम किसी ख्वाब को आँखों में सजा कर देखो
तुम किसी आग को सीने में बसा कर देखो
जिंदगी किस कदर फ़िर प्यार करेगी तुमको
तुम किसी शक्स को अपना तो बना कर देखो
दस्तके बहुत दी होंगी तुमने दरवाजों पे
तुम किसी रोज़ इन्हे दीवार पर लगा कर देखो
अर्थ कुछ भी न बहादुरों के लिए काँटों का
तुम किसी पाव को काँटों पे चुभा कर देखो
लकीरे रौशनी की खींचेगा दुनिया भर में
तुम किसी दीप को अंधेरो से लड़ाकर देखो
30 जनवरी 2009 को 4:00 am बजे
दस्तके बहुत दी होंगी तुमने दरवाजों पे
तुम किसी रोज़ इन्हे दीवार पर लगा कर देखो
बहुत खूब भाई छा गये ....
अनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
30 जनवरी 2009 को 4:17 am बजे
waah bahut hi badhiya badhai
30 जनवरी 2009 को 10:27 am बजे
बहुत सुंदर....
31 जनवरी 2009 को 2:53 am बजे
जिंदगी किस कदर फ़िर प्यार करेगी तुमको
तुम किसी शक्स को अपना तो बना कर देखो
बेहतरीन....खूबसूरत ग़ज़ल है आपकी...बधाई...
नीरज