ग़ज़ल
गुरुवार, 15 जनवरी 2009
एक पत्थर पिघलते देखा है
उसको नज़रे बदलते देखा है
एक दिन रौशनी करेगे हम
हमने सूरज निकलते देखा है
आप नाहक गुरुर करते है
अच्छे अच्छो को ढलते देखा है
जिंदगी क्या इसी को कहते है
हमने रिश्तो को जलते देखा है
लोग कहते है ' तुषार ' को हमने
गिरते गिरते संभलते देखा है
तुषार
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