ग़ज़ल  

शनिवार, 17 जनवरी 2009

प्यास के पल शुमार मत करना
मन की नदिया को पा मत करना
रात के घर बहुत है राहों में
तू अंधेरो से प्यार मत करना
दुःख की गंगा का कापता जल हूँ
मेरी खातिर सिंगार मत करना
में हूँ दर्दो के देश का वासी
राहतो ! मुझसे प्यार मत करना
यह शहर हादसों का आदी है
बेवजह जानिसार मत करना
संगदिल वक्त की नसीहत है
इन्तजारे बहार मत करना
घुट लेना हृढ्य का हर आंसू
नैन भी राजदार मत करना
दूध माँ का जहां लजाता हो
राह वो इक्तियार मत करना
' सारथी ' ज़ख्म को हरा रखना
प्रेम को दागदार मत करना

"आचर्य सारथी "

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