ग़ज़ल
गुरुवार, 15 जनवरी 2009
तू भोला है, लूट जाएगा, पागलपन की बात न कर
तेरा मन हो या फ़िर कंचन आभूषण की बात न कर
रिमझिम बूंदे, तीज मखमली, रेशमी गीतों वाले झूले
गए दिनों की यादे है अब उस सावन की बात न कर
तेरी आँखों में है अशर्फी, हाथो में नीलाम कलम
पाहन बंधे हुए पंखो से खुले गगन की बात न कर
अब तो अपनों के ही हाथो में गर्दन है खैर नही
तुझे छाव में डाल जाए जो उस दुश्मन की बात न कर
प्रतिबिम्बों की इस दुनिया में असल नक़ल का भेद किसे
चिडिया चोंच तुडा बैठैगी तू दर्पण की बात न कर
नए विधानों की सूची में सोचना भी संगीन जुर्म है
सूली चडा दिया जाएगा नव-चिंतन की बात न कर
16 जनवरी 2009 को 12:10 am बजे
bahut sundar gazal hai..
16 जनवरी 2009 को 2:16 am बजे
वाह जी वाह राहुल जी बेहतरीन गजल पेश की है आपने धन्यवाद