मेरी प्रिये
मंगलवार, 27 जनवरी 2009
तुम्हारी आँखे
वैसी नही
जिन्हें कह सकू नशीली,
तुम्हारी मुस्कान
भी तो सजावटी नही,
तुम्हारे दांत नही है
मोतियों जैसे,
शकल-ओ-सूरत से भी
परी नही हो तुम।
पर फ़िर भी
सबसे बड़कर है
तुम्हारी भावनाए,
तुम्हारा निर्मल मन,
और
नि : सवार्थ स्नेह,
इसलिए प्रिये
मुझे तुम प्रिये हो,
और यकीं मानो
तुम सबसे सुंदर हो
मेरे लिए।
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